अरबों की मालकिन फिर भी सब्जी बेंच रही हैं सुधा मूर्ति !, लोगों ने कहा- आप महान हैं…

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नई दिल्ली
त्याग, सादगी, कर्तव्यपरायण, मिसाल और लाखों लोगों की प्रेरणास्त्रोत से शायद ही कोई हो जो परिचित न हो। आज सोशल मीडिया पर उनका नाम ट्रेंड कर रहा है। सोशल मीडिया में उनकी एक तस्वीर भी वायरल हो रही है। उस तस्वीर में सुधा मूर्ति ढेर सारी सब्जियों के बीच बैठी हुई दिख रही हैं।

इंफोसिस कंपनी के फाउंडरसुधा मूर्ति आईटी सेक्टर की सबसे बड़ी कंपनी इंफोसिस के संस्थापक एन नायरण मूर्ति की पत्नी हैं। लेकिन यही उनका परिचय नहीं है। इस कंपनी को खड़ा करने के लिए कभी सुधा मूर्ति () ( इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति की पत्नी) ने त्याग और परिश्रम की पराकाष्ठा पार कर दी थी। सुधा मूर्ति ने अब तक 92 किताबें लगभग सभी भारतीय भाषाओं में लिखी है।

सोशल मीडिया पर सुधा मूर्ति की एक तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें वो एक सब्जी की दुकान पर बैठी हुई हैं। इस तस्वीर के बारे में सोशल मीडिया यूजर्स का ये कहना है कि सुधा मूर्ति साल में एक दिन सब्जी बेंचती हैं। ये उसी की तस्वीर है। सुधा मूर्ति युवाओं की प्रेरणास्त्रोत है और उनकी किताबें युवाओं को बहुत पसंद भी आती हैं। सुधा मूर्ति की इस तस्वीर ने लिखा है कि करोड़ों की मालकिन होने के बावजूद इतना सादा जीवन बिताना कोई आसान काम नहीं है लेकिन सुधा मूर्ति का व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा है।

सुधा मूर्ति की पहली नौकरीअगर मैं ये कहूं कि त्याग और सादगी का दूसरा नाम सुधा मूर्ति (Sudha Murthy) है तो ये अतिशयोक्ति नहीं कहलाएगा। सुधा मूर्ति पहले TELCO (टेल्को) कंपनी में बतौर इंजीनियरिंग काम करती थीं। मूर्ति पुणे स्थित टेल्को में काम करने वाली एकमात्र महिला थीं। वहीं टेल्को कंपनी में नौकरी मिलने की भी एक अलग ही कहानी है। फिलहाल शादी से पहले उनका नाम सुधा कुलकर्णी होता था। उसके बाद नारायण मूर्ति () से शादी हो जाने के बाद उनका नाम सुधा मूर्ति हो गया। एक इंटरव्यू के दौरान ये बात उन्होंने खुद बताई थी।

चौंक गए थे जे आर डी टाटाएक बार टाटा ग्रुप के चेयरमैन जेआरडी टाटा (JRD TATA) ने सुधा मूर्ति ने उनसे नाम पूछा। उनका जवाब सुनकर वो भी हंस पड़े थे। सुधा मूर्ति (Sudha Murthy) ने जवाब दिया, ‘सर जब मैंने टेल्को ज्वाइन किया था तब सुधा कुलकर्णी और अब सुधा मूर्ति।’ इसके बाद 1981 में उन्होंने टेल्को कंपनी छोड़ दी। एक बार फिर जेआरडी टाटा से उनका आमना-सामना हुआ। इस बार वो बोलीं कि मैं टाटा कंपनी को छोड़ रही हूं। जेआरडी टाटा थोड़ा चौंक गए और पूछा क्यों?. तब मूर्ति ने जवाब दिया कि मेरे पति इंफोसिस नाम की एक नई कंपनी खोलने जा रहे हैं मैं उनका हाथ बटाऊंगी। इतना सुनकर जेआरडी टाटा ने उनको शुभकामनाएं देते हुए सलाह भी दी। जेआरडी टाटा ने कहा कि कोई भी शुरूआत दबे मन से मत करना। शुरूआत हमेशा फुल कॉन्फिडेंस से करना। तभी सफलता मिल पाएगी और हां जब तुम इस काबिल हो जाना तो समाज सेवा मत भूलना। क्योंकि समाज हमें बहुत कुछ देता है।

नारायण मूर्ति ने मांगी मददकुछ इस तरह इंफोसिस कंपनी की नींव रखी गई। एक इंटरव्यू के दौरान सुधा मूर्ति ने बताया था, ‘उन्होंने (एनआर नारायण मूर्ति) मुझे बताया कि मुझे आपकी कड़ी मेहनत के तीन साल की आवश्यकता है और मैं कमाई नहीं कर पाऊंगा, आपको परिवार का प्रबंधन करना होगा और मुझे शुरुआती निवेश देना होगा। मैंने कहा ठीक है. जब आपके पास बहुत सी चीजें नहीं होती हैं, तो आप डरते नहीं है। मैंने अपने करियर में केवल तीन साल गंवाए, यह ठीक है।’

नौकरी छोड़नी पड़ी थी सुधा मूर्ति को1981 में मूर्ति ने अपने बड़े सपने को साकार किया और यह इन्फोसिस के लिए शुरुआत थी, जो सॉफ्टवेयर परामर्श में सबसे बड़े नामों में से एक थी। नारायण मूर्ति ने कहा कि वो और सुधा दोनों एक साथ इंफोसिस में नहीं रह सकते। नारायण मूर्ति ने कहा कि ये तुम चुन सकती हो कि तुम इंफोसिस ज्वाइन करो या मैं। इस पर सुधा मूर्ति ने खुद वहां ज्वाइन नहीं किया।

इस पर सुधा मूर्ति ने कहा, ‘यह मेरे लिए बहुत कठिन था, यह एक आसान निर्णय नहीं था क्योंकि 1968 में मैं इंजीनियरिंग कॉलेज और 1972 में मैंने स्नातक किया था। जहां विश्वविद्यालय में एक भी लड़की नहीं थी। मेरे जैसा एक व्यक्ति जो करियर के प्रति जागरूक था और तकनीकी चीजों में इतना शौकीन था। यह बहुत कठिन था।

नारायणमूर्ति पहले कर्मचारी नहीं थेइंफोसिस के शुरू करने के पीछे मुख्यतौर पर नारायणमूर्ति को माना जाता है। लेकिन वो कंपनी के पहले कर्मचारी नहीं हैं। पहले व्यक्ति एनएस राघवन हैं। नारायण मूर्ति कंपनी के चौथे कर्मचारी थे। उन्हें पटनी कंप्यूटर्स में अपना बचा हुआ काम पूरा करने में एक साल का वक्त लग गया। एक साल बाद उन्होंने इंफोसिस जॉइन किया। इंफोसिस के पास 1983 तक एक भी कंप्यूटर नहीं था। मूर्ति की आर्थिक हालत ऐसी नहीं थी कि वो कंप्यूटर का आयात करवाते। कंपनी को पहला कंप्यूटर हासिल करने में 2 साल का वक्त लग गया। शुरुआती वर्षों में कंपनी के सामने मुश्किलें भी आईं। इंफोसिस उस वक्त संकट में आ गया, जब कंपनी के एक संस्थापक सदस्य अशोक अरोड़ा ने कंपनी छोड़ दी।

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