अलग धर्म के लोगों की शादी पर पब्लिक नोटिस, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट क्यों पहुंचा मामला

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नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है जिसमें कहा गया है कि स्पेशल मैरिज ऐक्ट के तहत शादी करने की इच्छा रखने वाले कपल की व्यक्तिगत जानकारी सार्वजनिक की जाती है और ये निजता के अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि उस प्रावधान को खारिज किया जाए, जिसके तहत स्पेशल मैरिज ऐक्ट में शादी से पहले नोटिस पब्लिकेशन का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर के संबंधित प्रावधानों को खारिज करने की मांग की गई है।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अगुवाई वाली बेंच ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है। केरल के इरनाकुलम में तीसरे वर्ष की लॉ स्टूडेंट ने सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद-32 के तहत अर्जी दाखिल कर कहा है कि स्पेशल मैरिज ऐक्ट का उक्त प्रावधान जिसमें पब्लिक नोटिस जारी किया जाता है वह निजता और गरिमा के साथ जीवन के अधिकार का उल्लंघन करता है, लिहाजा उक्त प्रावधान को खारिज किया जाए। याचिका में कहा गया है कि स्पेशल मैरिज ऐक्ट की धारा-5, 6(2), 6(3), 7, 8, 9 और 10 संविधान के समानता और गरिमा के साथ जीवन के अधिकार और निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

‘नोटिस पब्लिकेशन निजता के अधिकार का उल्लंघन’
स्पेशल मैरिज ऐक्ट की धारा-5 कहती है कि जो भी कपल शादी करना चाहता है, उनमें से एक मैरिज ऑफिस के इलाके में 30 दिन पहले से रहता हो और कपल जो शादी करना चाहते हैं वह मैरिज ऑफिसर के नोटिस में लाएंगे। धारा-6 के मुताबिक नोटिस मिलने के बाद मैरिज ऑफिसर उसे शादी के नोटिस बुक में दर्ज करेंगे और मैरिज ऑफिसर नोटिस को प्रकाशित करेंगे। नोटिस पब्लिकेशन में डिटेल होगा। ये डिटेल पब्लिकेशन पब्लिक स्क्रूटनी के लिए होता है और ये नोटिस 30 दिन का लिए होता है। इसका मकसद होता है कि कोई भी शादी के लिए ऑब्जेक्शन दाखिल कर सकता है। याचिकाकर्ता ने अपनी अर्जी में कहा है कि इस तरह से नोटिस पब्लिकेशन निजता के अधिकार का उल्लंघन है।

भारत सरकार को बनाया प्रतिवादी
तीसरे ईयर की लॉ स्टूडेंट ने अपनी अर्जी में भारत सरकार को प्रतिवादी बनाते हुए कहा है कि स्पेशल मैरिज ऐक्ट के उक्त प्रावधान, जो भी कपल शादी करना चाहते हैं उनके निजता के अधिकार पर विपरीत असर डालता है। निजता का अधिकार अनुच्छेद-21 के तहत जीवन के अधिकार में शामिल है। निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और ये सुप्रीम कोर्ट हाल के जजमेंट में कह चुका है। स्पेशल मैरिज ऐक्ट के तहत अलग-अलग धर्म के लोग बिना धर्म बदले शादी कर सकते हैं। लेकिन ऐसे लोग जब शादी करना चाहते हैं तो उन्हें व्यक्तिगत डिटेल बताना होता है और पब्लिक नोटिस जारी किया जाता है। ये अलग-अलग धर्म के लोगों के शादी के अधिकार के साथ भेदभाव है।

‘लोगों के ऑब्जेशन मांगने का कोई आधार नहीं’
याचिका के मुताबिक, किसी भी पर्सनल लॉ के तहत शादी करने पर ऐसा प्रावधान नहीं है। जो लोग भी धर्म निरपेक्ष तरीके से शादी करना चाहते हैं उनकी पहचान उजागर होती है और इसके जरिए उन्हें प्रताड़ित करने का रास्ता मिल जाता है। नोटिस का पब्लिकेशन और लोगों के ऑब्जेशन मांगने का कोई आधार नहीं है। इसे खारिज किया जाना चाहिए। उक्त प्रावधान शादी के अधिकार और गरिमा के साथ जीने का अधिकार व निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है। ऐसे में स्पेशल मैरिज ऐक्ट के उक्त प्रावधानों को गैर संवैधानिक और गैर कानूनी घोषित करते हुए खारिज किया जाए।

अगर कोई भागकर शादी करे तो?
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने जानना चाहा कि अगर कपल भागकर शादी करना चाहते हैं फिर उन मामलों में क्या होगा। अगर बच्चे भागकर शादी करने लगें फिर उन मामलों में क्या होगा। पैरेंट्स अपने बच्चों के बारे में कैसे जानकारी रख पाएंगे। याचिकाकर्ता के वकील कहा कि याचिकाकर्ता ये नहीं कह रही है कि मैरिज ऑफिसर कपल से उनके बारे में डिटेल जानकारी नहीं ले सकते। यहां मुद्दा व्यक्तिगत रेकॉर्ड के पब्लिकेशन का है और व्यक्तिगत जानकारी पब्लिक करने से जुड़ा मामला है।

क्या है स्पेशल मैरिज ऐक्ट
स्पेशल मैरिज ऐक्ट के तहत शादी के प्रावधान के मुताबिक लड़का और लड़की बालिग होने चाहिए। दोनों शादी करने की योग्यता रखते हों, वे किसी भी धर्म के हो सकते हैं। यानी लड़की की उम्र कम से कम 18 साल और लड़के की उम्र कम से कम 21 साल होनी चाहिए और दोनों शादी की योग्यता रखते हों मसलन शादीशुदा न हों आदि। इसके बाद दोनों इलाके के रजिस्ट्रार के सामने शादी के लिए आवेदन दे सकते हैं। रजिस्ट्रार एक महीने के लिए पब्लिक नोटिस निकालता है और इस दौरान आपत्ति मांगता है कि क्या किसी को इस शादी से कोई आपत्ति है। इस आपत्ति का पीरियड खत्म होने के बाद दोनों मैरिज रजिस्ट्रार के सामने पेश होते हैं और फिर दोनों की शादी रजिस्टर्ड कर ली जाती है। दोनों अपने-अपने धर्म को बिना बदले स्पेशल मैरिज ऐक्ट के तहत शादी कर सकते हैं।

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