जम्मू कश्मीर में () सुरक्षा एजेंसियों के लिए नया सिरदर्द बनते जा रहे हैं क्योंकि घाटी में आतंकी समूहों की ओर से अपने पाकिस्तानी आकाओं से संपर्क के लिए इनका इस्तेमाल किया जा रहा है। इस नई टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की जानकारी 2019 में सामने आई जब अमेरिका से यह अनुरोध किया गया कि वह पुलवामा आतंकी हमले में के आत्मघाती हमलावर की ओर से इस्तेमाल किए गए ‘डिजिटल सिम’ का ब्यौरा सर्विस प्रोवाइडर से मांगे। इस आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 कर्मी शहीद हो गए थे।
अधिकारियों ने कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) और अन्य सुरक्षा एजेंसियों की ओर से की गई विस्तृत जांच में हालांकि यह संकेत मिला कि अकेले पुलवामा आतंकी हमले के लिए 40 से ज्यादा डिजिटल सिम कार्डों का इस्तेमाल किया गया और घाटी में अभी ऐसे और डिजिटल सिम मौजूद हैं। यह एक बिल्कुल नया तरीका है जिसमें सीमा पार के आतंकवादी ‘डिजिटल सिम’ कार्ड का इस्तेमाल कर रहे हैं जो किसी विदेशी सर्विस प्रोवाइडर की ओर से जारी किए गए हैं।
ऐसे मिलता है डिजिटल सिम कार्ड
इस तकनीक में कंप्यूटर पर एक टेलीफोन नंबर बनाया जाता है और कस्टमर सर्विस प्रोवाइडर का एक ऐप अपने स्मार्ट फोन पर डाउनलोड कर लेता है। यह नंबर वाट्सऐप, फेसबुक, टेलीग्राम या ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स से जुड़ा रहता है। इस सर्विस को शुरू करने के लिए वेरिफिकेशन का कोड इन नेटवर्किंग साइट्स की ओर से बनाया जाता है और स्मार्ट फोन पर हासिल किया जाता है।
इस्तेमाल किए जाने वाले नंबर में जुड़ा होता है देश का कोड
अधिकारियों ने कहा कि इस्तेमाल किए जाने वाले नंबर में देश का कोड या ‘मोबाइल स्टेशन इंटरनेशनल सब्सक्राइबर डायरेक्टरी नंबर’ (MSISDN) नंबर पहले जुड़ा होता है। उन्होंने कहा कि अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, इजराइल की टेलीकॉम कंपनियों के अलावा प्योर्तो रिको और अमेरिका के नियंत्रण वाले एक कैरेबियाई द्वीप के नंबर अभी उपलब्ध नजर आ रहे हैं।
मोबाइल फोन को फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा
अधिकारियों ने कहा कि सभी मोबाइल फोन उपकरण को विस्तृत फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा जा रहा है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि क्या उनका इस्तेमाल कभी डिजिटल सिम के लिए तो नहीं हुआ। एक अधिकारी ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में तकनीक के अपने अच्छे और बुरे पहलू होते हैं। सुरक्षा बलों को न सिर्फ समय के साथ खुद को अपडेट करना होता है बल्कि उनके दुरुपयोग की साजिश रचने वालों को रोकने के लिए उनसे एक कदम आगे सोचना पड़ता है।
डिजिटल सिम कार्ड की खरीद में जोखिम
डिजिटल सिम कार्ड की खरीद में जाली पहचान का इस्तेमाल करने का जोखिम भी काफी ज्यादा होता है। मुंबई के 26/11 हमलों की जांच के दौरान यह पाया गया कि कॉलफोनेक्स को वेस्टर्न यूनियन मनी ट्रांसफर के जरिए 229 अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया गया था जिससे हमलों के दौरान इस्तेमाल की गई वॉयस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल (वीओआईपी) को चालू किया गया सके। यह रकम रसीद संख्या 8364307716-0 के जरिए ट्रांसफर की गई थी। यह रकम इटली के ब्रेससिया में स्थित ‘मदीना ट्रेडिंग’ को पाक के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के किसी जावेद इकबाल की ओर से भेजे जाने का दावा किया गया था। इटली की पुलिस की ओर से हालांकि 2009 में पाकिस्तान के दो नागरिकों को गिरफ्तार किए जाने के बाद यह साफ हुआ कि फर्म को इकबाल के नाम से करीब 300 बार रकम भेजी गई जबकि उसने कभी इटली की धरती पर कदम रखा ही नहीं।