'कांग्रेस के लिए आत्मचिंतन का समय'

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मध्य प्रदेश में इस वक्त सियासी उठापटक का दौर जारी है। कमलनाथ सरकार गिर तो गई, लेकिन अभी नई सरकार का गठन नहीं हुआ है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने से राज्य इकाई में नए समीकरण बनने की बात कही जा रही है। बीजेपी को सिंधिया का साथ लेने की जरूरत क्यों पड़ी, इसका क्या असर पड़ सकता है, इन सारे सवालों का जवाब पाने को एनबीटी नेशनल ब्यूरो की विशेष संवाददाता पूनम पाण्डे ने बात की बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और मध्य प्रदेश प्रभारी विनय सहत्रबुद्धे से। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश :

•मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार को गिराने में बीजेपी की अहम भूमिका मानी जा रही है। चुनी हुई सरकार को अस्थिर करना कहां तक उचित है?
यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि कमलनाथ सरकार को गिराने में बीजेपी की कोई भूमिका नहीं है, वह खुद अपने विधायकों के इस्तीफे देने के कारण गिरी है। कमलनाथ सरकार ने जनता के साथ बड़ी धोखेबाजी की, जिसकी वजह से कांग्रेस के विधायक भी असंतुष्ट महसूस कर रहे थे। राहुल गांधी ने कहा था कि 10 दिन के अंदर कर्ज माफी होगी। अब 15 महीने हो गए, पर कुछ नहीं हुआ। किसान नाराज हैं, वहां का आम आदमी नाखुश है। भ्रष्टाचार चरम पर है। ऐसे में जब भी विधायकों को लगता है कि मौजूदा सरकार के जरिए जनता की सेवा कारगर तरीके से नहीं हो सकती तो वह उस पार्टी को त्याग देते हैं, और जो दल उन्हें अधिक विश्वसनीय लगता हैं उसमें वह सहभागी होते हैं।

•कांग्रेस के जिन 22 विधायकों ने इस्तीफा दिया, वे सब आपके साथ आ गए। माना जा रहा है कि उपचुनाव में वही उम्मीदवार होंगे। ऐसे में क्या बीजेपी कार्यकर्ताओं की अनदेखी नहीं होगी?
हमारी कार्यकर्ता आधारित पार्टी है, इसलिए हम कभी भी कार्यकर्ताओं की अनदेखी नहीं करते। नए नेता आने से हमेशा उनका ही दबदबा रहता है, ऐसा भी नहीं होता। नेता समाहित हो जाते हैं, वह भी जानते हैं कि नई पार्टी में जाने का मतलब क्या होता है।

•दलबदल कानून को बेअसर करने के लिए निर्वाचित विधायकों के इस्तीफे दिलाने का चलन शुरू हुआ है। भविष्य की राजनीति में इसका क्या असर देखते हैं?
दलबदल कानून की अपेक्षा यह विषय इससे ज्यादा जुड़ा है कि राजनीतिक दल किस तरह संचालित होते हैं। अगर असम में हिमंत विश्वशर्मा हमारी पार्टी में आए तो उसके पीछे एक कारण यह भी था कि उनकी पुरानी पार्टी में उनकी सुनवाई नहीं हो रही थी। अगर ज्योदिरादित्य आए हैं तो इसीलिए कि उनकी पार्टी में उनकी सुनवाई नहीं हो रही थी। अगर दूसरे राजनीतिक दल अपनी पार्टी के संचालन में बहुत गलत तरीका अपनाते हैं तो क्या किया जाए? उन्हें अपने संचालन की प्रक्रिया ठीक करनी होगी, और यह हर राजनीतिक दल को करना है। अगर कांग्रेस से लोग बार-बार लोग अलग हुए हैं तो ऐसा क्यों होता है- यह कांग्रेस के आत्मचिंतन का विषय है। ऐसा अन्य राष्ट्रीय दलों में आमतौर पर नहीं हुआ है।

•बड़ा सवाल यह कि मध्य प्रदेश में बीजेपी के पास खुद मजबूत और लोकप्रिय लीडरशिप है, फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया को बीजेपी में लाने की क्या जरूरत पड़ी?
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का साथ क्यों छोड़ा, इसका जवाब तो वही दे सकते हैं। हमारे लिए तो सबका साथ- सबका विकास- सबका विश्वास मंत्र है ही। मध्य प्रदेश के विकास के लिए और वहां सुशासन स्थापित करने के लिए कोई हमें सामने से आकर सहयोग दे रहा है तो भला हम सहयोग क्यों नहीं लेंगे?

•सिंधिया को साथ लेने में बीजेपी क्या फायदा देख रही है? उनके आने से पार्टी के अंदर टकराव बढ़ने का डर नहीं है?
ज्योतिरादित्य राष्ट्रीय धरातल पर भी काफी समय से सक्रिय हैं, प्रदेश के नेता हैं, तो उस दृष्टि से हमें निश्चित रूप से लाभ होगा। इनके बारे में सबसे अहम है कि इनका पूरा घराना हमारे साथ पहले से रहा है और इसलिए ज्योतिरादित्य का बीजेपी में आना एक स्वाभाविक घटना है। हमारे यहां कई ऐसे नेता हैं जो दूसरी पार्टियों से आए हैं, मगर हम कभी भी टकराव की स्थिति नहीं लाते। स्थिति को काबू में रखना और समन्वय के आधार पर हर किसी का सम्मान हो, सबको उचित अ‌वसर मिले, यह हम बहुत अच्छे तरीके से अमल में लाए हैं।

•बीजेपी खुद को परिवारवाद के खिलाफ बताती रही है, ज्योतिरादित्य भी एक घराने से आते हैं, तो परिवारवाद के खिलाफ सोच का क्या हुआ?
हमारे परिवारवाद की परिकल्पना साफ है। घरानाशाही मतलब सरकार और संगठन का सर्वोच्च पद किसी एक घराने के लिए सुरक्षित रखा जाना! मगर यदि किसी को अपने पिता, भाई, बहन या माता के राजनीति में होने के कारण टिकट से नकारा जाए तो यह अलोकतांत्रिक है और ऐसा नहीं हो सकता। ऐसे कई लोग हैं। मुंडे जी की बेटी हैं, खड़गे जी की बेटी हैं, वसुंधरा जी का बेटा है। केवल बेटा-बेटी या रिश्तेदार होने से उन पर अन्याय नहीं करना चाहिए।

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