लोकसभा में पेश हुए कृषि बिलों पर संसद से लेकर सड़क तक बवाल मचा है। इन नए प्रावधानों को लेकर सरकार के भीतर ही असहमतियां सामने आ चुकी हैं। खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल इन बिलों के विरोध में इस्तीफा दे चुकी हैं। किसान सड़क पर आंदोलन कर रहे हैं। सरकार और विपक्ष, दोनों तरफ से तर्क दिए जा रहे हैं। सरकार का कहना है कि इन बिलों के जरिए 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। लोकसभा से भारी विरोध के बीच पास हुए इन बिलों में आखिर ऐसा क्या है जो इतना विरोध हो रहा है? दोनों तरफ के तर्क क्या हैं और कैसे यह बिल बाजार पर असर करेगा, आइए जानते हैं।
Agriculture bills 2020 explained: कृषि क्षेत्र से जुड़े तीनों प्रमुख बिलों- कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020, मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा विधेयक 2020 पर घमासान मचा हुआ है।
लोकसभा में पेश हुए कृषि बिलों पर संसद से लेकर सड़क तक बवाल मचा है। इन नए प्रावधानों को लेकर सरकार के भीतर ही असहमतियां सामने आ चुकी हैं। खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल इन बिलों के विरोध में इस्तीफा दे चुकी हैं। किसान सड़क पर आंदोलन कर रहे हैं। सरकार और विपक्ष, दोनों तरफ से तर्क दिए जा रहे हैं। सरकार का कहना है कि इन बिलों के जरिए 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। लोकसभा से भारी विरोध के बीच पास हुए इन बिलों में आखिर ऐसा क्या है जो इतना विरोध हो रहा है? दोनों तरफ के तर्क क्या हैं और कैसे यह बिल बाजार पर असर करेगा, आइए जानते हैं।
कौन से हैं वो तीन विधेयक जिन पर विवाद?
कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020
मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता
कृषि सेवा विधेयक 2020
ये विधेयक कोरोना काल में लाए गए कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश 2020 और मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश 2020 की जगह लेंगे।
सरकार के मुताबिक इन बिलों से किसानों को क्या फायदा है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार, विधेयकों से किसानों को लाभ होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुवार को ट्वीट कर कहा, “ये विधेयक सही मायने में किसानों को बिचौलियों और तमाम अवरोधों से मुक्त करेंगे।” उन्होंने कहा, “इस कृषि सुधार से किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए नए-नए अवसर मिलेंगे, जिससे उनका मुनाफा बढ़ेगा। इससे हमारे कृषि क्षेत्र को जहां आधुनिक टेक्नोलॉजी का लाभ मिलेगा, वहीं अन्नदाता सशक्त होंगे।” मोदी ने बिलों के विरोध को लेकर कहा कि किसानों को भ्रमित करने में बहुत सारी शक्तियां लगी हुई हैं। प्रधानमंत्री ने एक ट्वीट में साफ किया कि एमएसपी और सरकारी खरीद की व्यवस्था बनी रहेगी।
अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा। वह मंडियों और बिचौलियों के जाल से निकल अपनी उपज को खेत पर ही कंपनियों, व्यापारियों आदि को बेच सकेगा।
उसे इसके लिए मंडी की तरह कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा। मंडी में इस वक्त किसानों से साढ़े आठ फीसद तक मंडी शुल्क वसूला जाता है।
समान स्तर पर एमएनसी, बड़े व्यापारी आदि से करार कर सकेगा।
किसानों को उपज की बिक्री के बाद कोर्टकचहरी के चक्कर नहीं लगाना पड़ेंगे। उपज खरीदने वाले को 3 दिन के अंदर पेमंट करना होगा।
तय समयावधि में विवाद का निपटारा एवं किसान को भुगतान सुनिश्चित होगा। विवाद होने पर इलाके का एसडीएम फैसला कर देगा।
कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक एक इको-सिस्टम बनाएगा।
किसानों को अपनी पसंद के अनुसार उपज की बिक्री-खरीद की स्वतंत्रता होगी।
किसानों के पास फसल बेचने के लिए वैकल्पिक चैनल उपलब्ध होगा जिससे उनको उपज का लाभकारी मूल्य मिल पाएगा।
क्या सरकारी खरीद और MSP की व्यवस्था खत्म हो जाएगी?
न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP किसी फसल का वह दाम होता है जो सरकार बुवाई के वक्त तय करती है। इससे किसानों को फसल की कीमत में अचानक गिरावट के प्रति सुरक्षा मिलती है। अगर बाजार में फसल के दाम कम होते हैं तो सरकारी एजेंसियां एमएसपी पर किसानों से फसल खरीद लेती हैं।
सरकार:
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा में कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को बरकरार रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि इन विधेयकों से फसलों के एमएसपी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। किसानों से एमएसपी पर फसलों की खरीद जारी रहेगी।
सरकारी खरीद की व्यवस्था खत्म नहीं की जा रही है, बल्कि किसानों को और विकल्प दिए गए हैं जहां वे अपनी फसल बेच सकते हैं।
मंडी में जाकर लाइसेंसी व्यापारियों को ही अपनी उपज बेचने की मजबूरी खत्म हो गई है।
विरोधी:
कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी समेत विपक्षी सदस्यों ने कहा कि राज्यों में किसानों का मंडी बाजार इससे खत्म हो जाएगा। अधीर ने कहा कि कृषि राज्य का विषय है। इस मसले पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों को है। केंद्र का यह कदम संघीय व्यवस्था के खिलाफ है।
शिरोमणि अकाली दल के सांसद सुखबीर सिंह बादल ने लोकसभा में कहा कि इन विधेयकों से पंजाब के हमारे 20 लाख किसान प्रभावित होने जा रहे हैं। 30 हजार आढ़तिए, तीन लाख मंडी मजदूर, 20 लाख खेतिहर मजदूर इससे प्रभावित होने जा रहे हैं।
पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार ने भी विधेयकों की आलोचना की। तृणमूल कांग्रेस के नेता सौगत राय ने भी इन विधेयकों का विरोध किया है।
क्या इन तीन बिलों से मंडियां खत्म हो जाएंगी?
सरकार:
केंद्र के मुताबिक, बिल पास होने के बाद किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा। केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर के मुताबिक किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाएगा। सरकार ने साफ किया है कि मंडी के साथ सरकारी खरीद की व्यवस्था बनी रहेगी। इस बिल से मंडियां भी प्रतिस्पर्धी होंगी और किसानों को उपज का बेहतर मूल्य मिलेगा। राज्यों के अधिनियम के अंतर्गत संचालित मंडियां भी राज्य सरकारों के अनुसार चलती रहेगी।
राज्य के लिए एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमिटी (एपीएमसी) ऐक्ट है, यह विधेयक उसे बिल्कुल भी छेड़ता नहीं है।
विरोधी:
पंजाब की पार्टियां लगातार विरोध कर रही हैं। SAD के सुखबीर सिंह बादल के अनुसार, पंजाब में पूरी दुनिया में सबसे अच्छी मंडी व्यवस्था है, इस विधेयक के पारित होने के बाद चरमरा जाएगी। कांग्रेस ने भी लोकसभा में बिल के जरिए मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी, ऐसा दावा किया। विरोधियों का कहना है कि कंपनियां धीरे-धीरे मंडियों पर हावी हो जाएंगी और फिर मंडी सिस्टम खत्म हो जाएगा। इससे किसान कंपनियों के सीधे पंजे में आ जाएंगे और उनका शोषण होगा।
किसानों के पास दोनों विकल्प चुनने का अधिकार है… #AatnaNirbharKrishi #JaiKisan https://t.co/BHK8OSrG9M
— Narendra Singh Tomar (@nstomar) 1600359830000
मंडियों के बाहर भी किसान कंपनियों को उपज बेच सकेंगे तो नुकसान क्या है?
बिल का विरोध कर रहे किसानों को डर है कि नए कानून के बाद एमएसपी पर खरीद नहीं होगी। विधेयक में इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है कि मंडी के बाहर जो खरीद होगी वह एमएसपी से नीचे के भाव पर नहीं होगी। चूंकि बाहर बेचने पर कोई टैक्स नहीं देना होगा, ऐसे में किसानों को फायदा मिल सकता है। हालांकि अगर बाहर दाम कम मिलते हैं तो किसान मंडी आकर फसल बेच सकते हैं जहां उन्हें एमएसपी मिलेगा। कई मंडियों में साढ़े आठ फीसदी तक टैक्स है। यह किसान से ही वसूला जाता है। यह बिल किसानों को अपने खेत से व्यापार की सुविधा देता है। मंडी के बाहर होने वाले इस व्यापार पर किसान को कोई टैक्स नहीं देना होगा।
Cong has badly let down farmers of the nation's grain basket which fulfilled 80% food grain requirement in 1980 & s… https://t.co/PpfrXr4NX4
— Sukhbir Singh Badal (@officeofssbadal) 1600359430000
क्या मंडियों से मिलने वाला टैक्स है सरकारों के विरोध का कारण?
एमपीएमसी मंडियों का इन्फ्रास्ट्रक्चर पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में खासा बेहतर है। यहां एमएसपी पर गेहूं और धान की ज्यादा खरीद होती है। पंजाब में मंडियों और खरीद केंद्रों की संख्या करीब 1,840 है, ऐसी मंडी व्यवस्था दूसरी जगह नहीं है। हालांकि, एपीएमसी मंडियों में कृषि उत्पादों की खरीद पर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग मंडी शुल्क व अन्य उपकर हैं। पंजाब में यह टैक्स करीब 4.5 फीसदी है। आढ़तियों और मंडी के कारोबारियों को डर है कि जब मंडी के बाहर बिना शुल्क का कारोबार होगा तो कोई मंडी आना नहीं चाहेगा। राजनीतिक दलों के विरोध की एक वजह ये भी हो सकती है कि उनके राजस्व के एक स्त्रोत पर असर पड़ सकता है। पंजाब और हरियाणा में बासमती निर्यातकों और कॉटन स्पिनिंग और जिनिंग मिल एसोसिएशनों ने तो मंडी शुल्क समाप्त करने की मांग की है।
किसान संगठन कर रहे हैं जोरदार विरोध
कृषि संबंधी तीन विधेयकों से नाराज किसानों ने बीतें दिनों देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन किए हैं। पंजाब और हरियाणा में कई जगह हाइवे जाम कर दिए गए। दोनों राज्यों के किसानों ने विधेयक के खिलाफ नई दिल्ली के जंतर मंतर पर भी धरना दिया। भारतीय किसान यूनियन (लाखोवाल) के महासचिव हरिंदर सिंह लाखोवाल ने कहा, “जो सांसद संसद में कृषि विधेयकों का समर्थन करेंगे, उन्हें गांवों में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा।”
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