आश्रम के एक बार फिर से के लिए आमरण अनशन कर रहे हैं। शनिवार को उनके अनशन का 24वां दिन था। पिछले चार दिनों से पानी भी ना पीने के कारण उनकी तबीयत बिगड़ी जा रही थी। इसी को देखते हुए प्रशासन ने को जबरन मातृ सदन से उठाकर दिल्ली के एम्स भेज दिया। प्रशासनिक अधिकारियों के अनुसार, आत्मबोधानंद का स्वास्थ्य तेजी से बिगड़ रहा था और उनके वजन में तेजी से गिरावट हो रही थी।
बताते चलें कि गंगा की रक्षा के लिए लंबे समय से अनशन कर रहे प्रफेसर जीडी अग्रवाल उर्फ की पिछले साल मौत हो गई थी। ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद भी कई सालों से गंगा की रक्षा के लिए अनशन कर रहे हैं। सिर्फ 22 वर्ष की उम्र में संन्यासी हुए आत्मबोधानंद अब तक 10 से ज्यादा बार उपवास कर चुके हैं। पिछले साल उन्होंने 193 दिन से ज्यादा का अनशन किया था।
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डॉक्टरों ने जताया किडनी फेल होने के डर
हरिद्वार की एसडीएम कुसुम चौहान ने बताया कि ब्रह्मचारी आत्मबोधानंदर की मेडिकल रिपोर्ट आने के बाद प्रशासन ने यह कार्रवाई की है। मेडिकल के बाद उनके वजन में लगातार कमी महसूस की जा रही थी। डॉक्टरों ने आशंका जताई थी कि अगर उन्हें तुरंत चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई तो उनकी किडनी फेल हो सकती है।
साध्वी पद्मावती भी कराई गई थीं भर्ती
पिछले दिनों साध्वी पद्मावती को भी दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां उनकी स्थिति अभी भी गंभीर बनी हुई है। बता दें कि साध्वी पद्मावती भी गंगा की रक्षा के लिए अनशन पर बैठी थीं, जिसके बाद उनकी तबीयत बिगड़ गई। एसडीएम के अनुसार, मातृ सदन के संतों ने उत्तराखंड के किसी भी अस्पताल में मेडिकल सुविधा लेने से इनकार कर दिया था इसलिए उन्हें दिल्ली भर्ती कराया गया है।
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कौन हैं ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद
केरल के अलप्पुझा के रहने वाले आत्मबोधानंदर कंप्यूटर साइंस में ग्रैजुएट हैं। सिर्फ 22 साल की उम्र में वह संन्यासी हो गए। साल 2014 में उन्होंने कुछ कपड़ों, लैपटॉप और दो हजार रुपये के साथ अपना घर छोड़ दिया था। पढ़ाई के दौरान ही प्रॉजेक्ट छोड़कर निकले आत्मबोधानंद ने मातृसदन के संत शिवानंदजी से प्रेरणा लेकर संन्यास लिया था।
मातृसदन के दो संतों ने गंगा के लिए गंवाई जान
कनखल थाना क्षेत्र के जगजीतपुर गांव में गंगा के किनारे साल 1998 में स्थापित की गई मातृसदन संस्था के दो ब्रह्मचारी अपना बलिदान दे चुके हैं। स्वामी निगमानंद का बलिदान हो या फिर प्रफेसर से साधू बने स्वामी सानंद। इन संतों ने गंगा के लिए अपना सर्वस्व छोड़कर इसी आश्रम में अनशनरत रहकर मां गंगा के लिए जान दे दी। गंगा में खनन पर रोक लगाने की मांग को लेकर 78 दिनों तक अनशन करते हुए ब्रह्मचारी निगमानंद सरस्वती का 13 जून 2011 में देहरादून स्थित जौलीग्रांट अस्पताल में देहावसान हो गया था। स्वामी सानंद ने भी 112 दिन तक अनशन करते हुए खुद को गंगा के प्रति समर्पित कर दिया था।