गुजरात: जन्म लेते ही 44 पॉजिटिव, डरा रहे केस

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अहमदाबाद
गुजरात के अहमदाबाद में कई गर्भवती महिलाएं उस समय भौंचक्का रह गईं, जब बच्चे को जन्म देने से पहले हुए टेस्ट में उन्हें कोरोना पॉजिटिव पाया गया। अधिकतर में कोई लक्षण नहीं पाया गया लेकिन वे कंटेनमेंट जोन में रहीं और संभवत: कम्युनिटी ट्रांसफर से उनमें वायरल संक्रमण फैला। यहां के सिविल हॉस्पिटल, एसवीपी, सोला सिविल, शारदाबेन और एलजी हॉस्पिटल में कोरोना संक्रमित 172 महिलाओं ने बच्चों को जन्म दिया, जिनमें से 44 नवजात संक्रमित पाए गए।

महिलाओं को नवजात के सुरक्षा की चिंता
सिविल हॉस्पिटल में गाएनेकॉलजी ऐंड ऑब्सटेट्रिक्स डिपार्टमेंट के हेड डॉक्टर अमिय मेहता ने कहा, ‘महिलाएं सबसे पहला सवाल यही पूछती हैं कि क्या उनका बच्चा सुरक्षित रहेगा। आंकड़े बताते हैं कि पिछले 2 महीनों में 90 बच्चों को डिलिवरी हुई, जिनमें महिलाएं कोरोना संक्रमित थीं। हालांकि इनमें से 30 प्रतिशत से भी कम केस में बच्चे पॉजिटिव निकले।’

कोरोना का सामना अच्छे से कर रही महिलाएं
इसी तरह से एसवीपी हॉस्पिटल में 70 कोरोना पॉजिटिव महिलाओं की डिलिवरी हुई। इसमें से 15 या फिर 21.4 प्रतिशत बच्चे कोरोना पॉजिटिव निकले। यहां डॉक्टर पारुल शाह ने बताया कि स्वाइन फ्लू जैसी संक्रमित बीमारियों की तुलना में कोरोना पॉजिटिव महिलाएं बेहतर तरीके से सामना कर रही हैं। सभी महिलाओं में से केवल एक को ही सांस लेने में सहायता की जरूरत पड़ी। बाकी खुद रिकवर हो गईं।

संक्रमित मां के इलाज के लिए प्रक्रियाओं में देरी
सोला सिविल हॉस्पिटल में डॉक्टर अजय देसाई ने बताया, ‘हॉस्पिटल में कोरोना संक्रमित 12 महिलाओं की डिलिवरी हुई, जिनमें से एक भी बच्चे में संक्रमण नहीं पाया गया। कुछ केसों में प्रेग्नेंसी की वजह से कॉम्प्लेक्सिटी डिवेलप हो गई क्योंकि यह कंडीशन ही इम्युनो सप्रेसेंट है। अगर सी-सेक्शन जैसी प्रक्रियाओं में कुछ दिनों की देरी हो जाती है तो ऐसा इसलिए कि मां में कोरोना लक्षण मिलें, तो ठीक किया जा सके। लेकिन इमर्जेंसी केसों के लिए कोई ऑप्शन नहीं है और हमने सभी प्रकियाओं का पालन पूरी सावधानी के साथ किया।’

मां से बच्चे में संक्रमण- वर्टिकल ट्रांसमिशन
विशेषज्ञों का कहना है कि ज्यादातर महिलाएं 20 से 30 साल के आयु वर्ग की हैं, जिनमें बीमारी नहीं पाई गई। कुछ बच्चों को छोड़कर ज्यादातर बच्चे संक्रमण से बच गए। डॉक्टर मेहता ने कहा, ‘मां से बच्चे में वायरल संक्रमण की ट्रांसफर की पहचान वर्टिकल ट्रांसमिशन के तौर पर हुई, जिसके बारे में स्टडी की जरूरत है। बच्चे के मानक जैसे कि उसका पॉजिटिव या निगेटिव रहना, कब ऐंटीबॉडी डिवेलप हुआ, उसे क्या परेशानी हुई की स्टडी जरूरी है, जो कि सभी केस में नहीं हुआ।’

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