कोरोना वायरस ने दुनिया की कई अर्थव्यवस्थाओं को तगड़े झटके दिए हैं। कुछ के इन्फ्रास्ट्रक्चर को चोट पहुंची है तो कहीं प्रॉडक्शन रुकने की वजह से कंपनियां मूव आउट कर रही हैं। सप्लाई चेन भी ध्वस्त हुई है। ऑप्टिक्स और बिजनेस, दोनों लिहाज से चीन को तगड़ा झटका लगा है। इसी दौरान, भारत उसे हैरान करने को तैयार है। यह एक मौका है कि उन कंपनियों को अपने देश बुलाया जाए जो कोरोना जैसी महामारी फैलने के बाद चीन में नहीं रहना चाहती। उन्हें अपना प्रॉडक्शन बेस बदलना है और भारत के लिए इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इशारा भी कर दिया है कि वे इस दिशा में इनवेस्टमेंट्स करने को तैयार हैं।
कैसे बुलाई जाएंगी कंपनियांमोदी अपने मंत्रियों से बात कर चुके हैं। कैबिनेट का प्रस्ताव भी लगभग तैयार है। पीएम कह भी चुके हैं कि भारत को सेल्फ-डिपेंडेंट बनाने की जरूरत है। पीएम मोदी के दिमाग में जो प्लान है, वो पिछले कई महीनों से इस्तेमाल हो रहा है। ये है ‘प्लग एंड प्ले’ मॉडल। इसके जरिए इनवेस्टर्स अच्छी जगहों को आइडेंटिफाई करते हैं और फिर तेजी से अपना प्लांट वहां लगा देते हैं। अभी जो सिस्टम है वो करीब दर्जनभर राज्यों में इनवेस्टर्स को अपना सेटअप लगाने का मौका देता है। क्लियरेंस के लिए केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें भी सिंगल-विंडो प्लैटफॉर्म तैयार करने में जुटी हैं। इसमें इलेक्ट्रॉनिक और मॉनिटरिंग सिस्टम भी होगा।
देश में बनेंगे और SEZकेंद्र सरकार अपनी तरफ से भी पैसा खर्चने को तैयार है। अधिकारियों के मुताबिक, यह पैसा नए एस्टेट्स और ग्रेटर नोएडा जैसे इकनॉमिक जोन्स बनाने में इस्तेमाल होगा। पीएम मोदी राज्यवार इनवेस्टमेंट जुटाना चाहते हैं। जैसे- गुजरात, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की फार्मा पर पकड़ है तो वे इसी सेक्टर में इनवेस्टमेंट की राह देखें। उत्तर प्रदेश जैसा राज्य जो इलेक्ट्रॉनिक्स का बेस बनकर उभरा है, उसे एग्रो-बेस्ड इंडस्ट्रीज के लिए भी प्रमोट किया जा सकता है।
बल्क में ड्रग्स सप्लाई करने पर भारत का जोरचीन इस समय ना सिर्फ क्वालिटी बल्कि भरोसे के संकट से भी जूझ रहा है। ऐसे में भारत की नजर कई पुरानी फार्मास्यूटिकल यूनिट्स को शुरू करने पर भी है ताकि वह बल्क ड्रग्स के लिए एक हब बन सके। अभी दवाओं के लिए दुनिया का 55 फीसदी कच्चा माल चीन से ही आता है। अगर भारत वर्तमान हालातों का फायदा उठाए तो वह चीन की जगह ले सकता है। मेडिकल के अलावा, मेडिकल टेक्सटाइल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, फर्नीचर जैसे प्रॉडक्ट्स को भी भारत बड़े पैमाने पर एक्सपोर्ट करना चाहता है।
क्यों बढ़ी चीन की मुश्किलेंचीन क्यों अब आंखों में खटकने लगा है? इसकी कई वजहें हैं। पहली तो ये कि वहां वेतन तेजी से बढ़ा है, इस वजह से कई मल्टीनैशनल कंपनीज एक नया प्रॉडक्शन बेस चाहती हैं। कोरोना वारयस से चीन के जुड़ाव और उसपर मचे ग्लोबल बवाल की वजह से भी कंपनियां चाहती हैं कि चीन सप्लाई का मेन सोर्स ना रहे।
भारत पहले से ही इस दिशा में कर रहा थ कामपीएम मोदी की नजर उन कंपनियों पर है जो चीन से बाहर निकलना चाहती हैं। कोरोना वायरस फैलने के बाद, इसकी संभावना बढ़ गई है कि कई देश अपने यहां की कंपनियों से कहेंगे कि वे चीन से बाहर मैनुफैक्चरिंग की व्यवस्था करें। भारत पिछले कुछ महीनों से ‘चाइना प्लस वन’ स्ट्रैटजी पर काम करता आ रहा है, अब उस कवायद ने जोड़ पकड़ लिया है। हाल में अमेरिका ने भी इस पूरी कवायद में तेजी दिखाई है।
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