'जंग में जाने दें..', अफसर से लड़ पड़े थे शशिकांत

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वीरेंद्र शर्मा, नोएडा
26 जुलाई का दिन हर साल के रूप में मनाया जाता है। पाकिस्तान से हुए युद्ध में भारत की विजय हुई थी। जीत के लिए देश के कई वीर जवानों को कुर्बानी देनी पड़ी थी। इन्हीं में एक योद्धा नोएडा के कैप्टन शशिकांत शर्मा भी थे। 5 अक्टूबर 1998 को देश के लिए शहादत देने वाले शशिकांत शर्मा के घर उनकी शादी की तैयारियां चल रही थीं। लेकिन घर पहुंची शहीद होने की खबर। शहर के लोग आज भी उन्हें नहीं भूले हैं। उनके नाम पर नोएडा में सेक्टर-37 के पास चौक और सड़क है।

शहीद कैप्टन शशिकांत शर्मा की शहादत को करीब 22 साल हो चुके हैं, लेकिन नोएडावासी आज भी उन्हें अपने दिलों में रखते हैं। हर साल शहीदी दिवस पर उन्हें शहरवासी श्रद्धांजलि देते हैं। साथ ही कैप्टन शशिकांत शर्मा मैमोरियल क्रिकेट टूर्नमेंट का भी आयोजन किया जाता है। उनके छोटे भाई डॉ. नरेश शर्मा ने बताया कि हर साल परिजनों के साथ कारगिल शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए जाते थे, लेकिन इस बार कोविड-19 की वजह से नहीं जा पा रहे हैं। शशिकांत उन्हें बहुत प्यार करते थे।

देश के लिए कुर्बानी देना हर किसी के नसीब में नहीं’
शहीद कैप्टन शशिकांत शर्मा को , वीरता पदक, अति वीरता पदक भी मिले। उनके पिता जोगिंदर पाल शर्मा फ्लाइट लेफ्टिनेंट रह चुके हैं। उनके भाई डॉ. नरेश शर्मा बताते है कि उनके पिता कहते हैं, ‘देश के लिए सेवा करने के बहुत मौके मिले। 1962 में चीन, 1965 और 1971 में पाकिस्तान से जंग लड़ी। लेकिन शहादत हर किसी को नसीब नहीं होती।’ डॉ. नरेश ने बताया कि पहली ही पोस्टिंग अमृतसर के आर्मर्ड रेजीमेंट में हुई थी।

खुद की थी युद्ध में जाने की बात
नौकरी को 2 साल भी नहीं हुए थे कि कारगिल में घुसपैठ की सूचनाएं आने लगीं। उन्होंने अपने कमांडिंग ऑफिसर के पास जाकर युद्ध में शामिल होने के लिए वॉलंटिअर सेवा देने की अनुमति मांगी थी। अफसरों के मनाही के बाद भी वे नहीं माने। घर में कैप्टन की शादी की तैयारियां चल रही थीं। दो महीने बाद शहनाइयां गूंजने वाली थीं, लेकिन उनकी शहादत की खबर आर्मी हेडक्वॉर्टर से दी गई।

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