जानिए अब चीन के साथ चल रहा क्या दांवपेच

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नई दिल्ली
पूर्वी लद्दाख में सीमा पर भारत और चीन के बीच तनाव () के पीछे ‘लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल’ (LAC) को लेकर दोनों देशों के परसेप्शन का अलग-अलग होना एक कारण है। लेकिन मौजूदा तनाव की कोई एक वजह नहीं है। इसके कई पहलू हैं- राजनीतिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक….। यही वजह है कि सीमा पर तनाव के बहाने भारत और चीन के बीच एक साथ कई रणनीतिक मोर्चों पर दांव खेले जा रहे हैं।

कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना
कोरोना के बाद चीन की छवि पर आघात हुआ है। वायरस कहां से पैदा हुआ, इसकी अंतरराष्ट्रीय जांच के लिए भी दबाव बढ रहा है। तमाम कंपनियां चीन से निकल रही हैं और भारत को अपने अगले संभावित ठिकाने के रूप में देख रही हैं। मोदी सरकार ने देश में चीन के निवेश पर कड़ी निगाह रखनी शुरू कर दी है और इससे जुड़े नियम सख्त कर दिए हैं। भारत भी काफी समय से अंतरराष्ट्रीय समीकरणों को नए सिरे से तय करने की कोशिश में है। चीन अब तक पाकिस्तान के जरिए भारत को उलझाकर रखता था ताकि वह वैश्विक पटल पर मजबूती से न उभरे लेकिन अब भारत क्षेत्रीय महाशक्ति के तौर पर दुनिया में अपनी दावेदारी मजबूती से पेश कर रहा है। यही वजह है कि भारत को उलझाने के लिए चीन पाकिस्तान का औजार के रूप में इस्तेमाल के साथ-साथ लद्दाख में खुद भी शरारत कर रहा है।

चीन की ‘सलामी टैक्टिस’
ईस्ट लद्दाख में एलएसी पर चीन की घुसपैठ उसकी ‘सलामी टैक्टिक्स’ का ही नमूना है जिसके तहत वह प्रतिद्वंद्वी को मनोवैज्ञानिक स्तर पर मात देकर अपने भूभाग और रणनीतिक प्रभाव का विस्तार करता आया है। बीआरआई, सीपीईसी जैसे प्रॉजेक्ट दरअसल चीन के ‘सलामी टैक्टिक्स’ के ही हिस्से रहे हैं। भारत पर इसका कोई प्रभाव न पड़ता देख चीन अब सीमा विवाद को लेकर मनोवैज्ञानिक जंग छेड़ रहा है साथ में पाकिस्तान का भी इस्तेमाल कर रहा है।

चीन छोड़ रहीं कंपनियां, चीनी निवेश पर भारत का अंकुश
भारत के कड़े तेवरों से चीन की भाषा नरम जरूर हुई है लेकिन उसकी तरफ से रणनीतिक दांवपेच जारी हैं। चीन तमाम देशों में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए निवेश और कर्ज को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करता आया है। यहां तक कि पाकिस्तान जैसे कई देशों को चीन अपने इन्हीं हथियारों की बदौलत अपने ‘आधुनिक उपनिवेश’ में तब्दील कर चुका है। भारत ने चीन की इसी रणनीति को नाकाम करने के लिए हाल ही में चीनी निवेश से जुड़े नियमों में सख्ती कर दी है। चीन को छोड़ने का मूड बना रही कंपनियां भारत को संभावित ठिकाने के तौर पर देख रही हैं। इसके अलावा नई दिल्ली उन वैश्विक प्रयासों का भी हिस्सा है जिसके तहत कोरोना वायरस कहां से पैदा हुआ, इसकी जांच की मांग की जा रही है। इन मोर्चों पर भारत आक्रामक है।

बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव से ध्यान भटकाने का पैंतरा
वैसे यह भी हकीकत है कि भेले ही कोरोना की वजह से चीन की छवि को तगड़ा झटका लगा है लेकिन वैश्विक समीकरण इतने जल्द बदलने वाले भी नहीं है। चीन अपनी कर्जनीति को बरकरार रखेगा ताकि गरीब देशों और उसकी असल मंशा को न भांप पाने वाले नेताओं को लुभा सके। उनका अपने ‘आधुनिक उपनिवेश’ के तौर पर इस्तेमाल कर सके। ‘कोरोना के गुनहगार’ के रूप में बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव के मद्देनजर ध्यान भटकाने के लिए दक्षिण चीन सागर में और आक्रामक हो सकता है।

चीन को आखिरकार पीछे हटना ही होगा
भारत जिस तरह पूर्वी लद्दाख में मजबूती से चीनी हिमाकत का जवाब दे रहा है, उससे साफ है कि पेइचिंग को आखिरकार पीछे हटना ही पड़ेगा। चीन भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कर भले ही चौंका सकता है लेकिन भारत ने अपने रुख से स्पष्ट जाहिर कर दिया है कि पेइचिंग लाख कोशिश कर ले वह एलएसी में एकतरफा बदलाव नहीं कर पाएगा। ऐसा नहीं हो सकता कि वह भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कर ले और लंबे वक्त तक वहां रहकर उस पर अपना दावा कर ले। भारत ने दो टूक जाहिर कर दिया है यह उसे कतई मंजूर नहीं।

डोकलाम में भारत के रुख को पहले ही देख चुका है चीन
भारत के स्पष्ट और मजबूत रुख को चीन डोकलाम में देख चुका है। वहां चीनी सेना भूटान की जमीन पर पहुंचकर रोड बना रही थी लेकिन भारत ने उसे रोक दिया। 72 दिनों तक दोनों देशों में सैन्य गतिरोध बना रहा लेकिन आखिरकार चीन को पीछे हटना पड़ा। अनुच्छेद 370 को बेअसर करने का भारत का फैसला भी चीन और पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश था कि जम्मू-कश्मीर पर नई दिल्ली के रुख को लेकर किसी तरह का भ्रम न पालें।

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