टिड्डी अटैक: पाक में इमरजेंसी, भारत में खतरा टला

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संदीप बुन्देला
टिड्डी सेना ने इन दिनों अफ्रीका में हाहाकार मचा रखा है। दो ग्राम के इस आसमानी कीड़े ने वहां के इथियोपिया, सोमालिया और केन्या में लाखों हेक्टेयर फसल चौपट कर दी है। संयुक्त राष्ट्र ने चिंता जताई है कि अगर जल्द इन पर काबू नहीं पाया गया तो लोग दाने-दाने को मोहताज हो सकते हैं। टिड्डियों की घुसपैठ ईरान होते हुए पाकिस्तान और इससे लगे राजस्थान और गुजरात के इलाकों में हो चुकी है। लेकिन टिड्डी की रोकथाम से जुड़े भारतीय वैज्ञानिक बता रहे हैं कि खतरा अभी टल चुका है। हालांकि पाकिस्तान ने अगर अपने यहां टिड्डियों पर लगाम नहीं लगाई तो दो महीने बाद एकबार फिर टिड्डी अटैक भारत को झेलना पड़ सकता है।

कितनी खतरनाक है टिड्डी
टिड्डी आमतौर पर पत्तियां, फूल, फल, बीज, छाल और पौध की कोपल खाकर फसलों को नष्ट करती है। सबसे विनाशकारी रेगिस्तानी टिड्डी है, जो इन दिनों दुनियाभर में चिंता का सबब बनी हुई है। यह एक दिन में अपने वजन के बराबर (2 से 2.5 ग्राम) पत्तियां-बीज खा जाती हैं। एक वर्ग किलोमीटर में करीब 40 लाख टिड्डियां होती हैं। यह झुंड एक दिन में खेतों को उतना नुकसान पहुंचाता है, जो 35 हजार इंसानों का एक दिन में पेट भर सकता है।

  • 90 दिन का कुल जीवनकाल
  • 50 दिन में वयस्क हो जाती है
  • 12-6 किमी/घंटे की स्पीड से उड़ती हैं
  • 150 किमी तक उड़ जाती हैं एक दिन में
  • 30 दिन अंडे देते हैं और फिर खत्म

100 साल का सबसे बड़ा हमला राजस्थान में
राजस्थान में मई 2019 से जनवरी-फरवरी 2020 के बीच टिड्डियों का 100 साल में सबसे बड़ा हमला हुआ है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 7 फरवरी को राज्यसभा में बताया कि राजस्थान के 12 जिलों में टिड्डियों ने 1.5 लाख हेक्टेयर फसलों को नुकसान पहुंचाया है। गुजरात में 20 हजार हेक्टेयर खेती चौपट हुई। इससे 3 दिन पहले ही राजस्थान के कृषि मंत्री ने केंद्र को चिट्ठी लिखकर टिड्डियों को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की थी। बता दें, सबसे ज्यादा नुकसान जालौर, जैसलमेर और बाड़मेर जिलों में हुआ है। हालांकि टिड्डियों की रोकथाम से जुड़े केंद्र सरकार के संस्थान से जुड़े वैज्ञानिक डॉ. के.एल. गुर्जर कहते हैं कि जो नुकसान होना था, वह हो चुका है। लेकिन अब टिड्डियों को लगभग खत्म किया जा चुका है। कुछ संख्या गंगानगर में है, जिस पर जल्द काबू पा लेंगे। हालांकि पंजाब, हरियाणा और वेस्ट यूपी के किसान भी इस खतरे को समझ रहे हैं। लेकिन डॉ. गुर्जर का कहना है कि वहां खतरा नहीं है।

  • 33 फीसदी फसल बर्बाद हो चुकी है राजस्थान, गुजरात में सरसों, अरंडी, गेहूं की
  • 150 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है 1.5 लाख किसानों को

टिड्डियों का यह आतंक राजस्थान के बाड़मेर तक ही सीमित नहीं है।

दो महीने बाद फिर खतरा
टिड्डियों से निपटने में जुटे वैज्ञानिक अप्रैल-मई में फिर से टिड्डियों के हमले की आंशका जता रहे हैं। डॉ. गुर्जर कहते हैं कि भारत को सबसे बड़ा खतरा पाकिस्तान से आ रही टिड्डियों से है। यह पड़ोसी मुल्क टिड्डियों की समस्या को भले ही इमरजेंसी घोषित कर चुका हो, लेकिन वहां अब भी ब्रीडिंग बहुतायत में है और टिड्डियों की रोकथाम के उसके उपाय अब भी गंभीर नहीं दिख रहे हैं। इससे चिंता बढ़ी है कि गर्मियों तक इनकी नई पीढ़ी हमले को तैयार होगी। बीते मई से भारत में जमी टिड्डियां भी पाकिस्तान से भारत आई थीं।

अफ्रीका से पाक-भारत पहुंचीं टिड्डियां
खाने को भरपूर फसल हो और नमी वाला कम सर्दी-कम गर्मी का मौसम तो टिड्डियां तेजी से बढ़ती हैं। मरने से पहले अपनी आबादी 20 गुना तक कर जाती हैं। परेशानी की बात यही है कि दो साल से मौसम टिड्डियों के अनुकूल है। साल 2018 के मई में मेकुनू चक्रवाती तूफान से यमन, यूएई, अरब और यमन तक फैले रब अल खली मरुस्थल में काफी बारिश हुई। फिर उसी साल अक्टूबर में लुबान तूफान ने अरब प्रायद्वीप में माकूल हालात बनाए। इससे पहले कि टिड्डियों का मौसम खत्म होता, साल 2019 के जनवरी-फरवरी में अफ्रीका और एशिया से लगे लाल सागर के तटीय इलाकों में अच्छी बारिश ने फिर टिड्डियो को पनपने का मौका दिया। खाने की तलाश में वे अरब की हवाओं के साथ ईरान पहुंचीं, जहां पहले से हो चुकी बारिश ने टिड्डियों को जमने में मदद दी। फिर अप्रैल से जून 2019 में ये दक्षिण एशिया में पाकिस्तान और भारत से लगे थार रेगिस्तान आ गईं।

नवंबर की बारिश ने बढ़ाई जिंदगी
मॉनसून और फिर बीते नवंबर में थार रेगिस्तान और पश्चिमी राजस्थान में अच्छी बारिश हुई, जिससे पश्चिम एशिया से यहां पहुंचीं टिड्डियों को नई पीढ़ी पैदा करने की आदर्श परिस्थितियां फिर मिलीं। आमतौर पर टिड्डियां नवबंर तक लौट जाती हैं, लेकिन इस बार नवंबर में 9 दिन की बारिश ने इन बिन बुलाए मेहमानों का दिल लगा दिया और 2020 का फरवरी आ गया है, लेकिन यहीं पर हैं।

गर्मी पसंद इस कीड़े ने ठंड में जीना सीख लिया
टिड्डियों की आबादी बढ़ाने में बढ़ता तापमान बेहतर होता है, पर लगता है कि आबोहवा में बदलाव के साथ ये भी बदल रही हैं। तभी तो सर्दियों में इन्होंने खुद को बचाना सीख लिया है। साल 1993 में जब टिड्डियों का हमला हुआ था तो उस दौरान अक्टूबर की ठंड में ये मर गई थीं। लेकिन अब 26 साल बाद ठंड में इनका हमला और खतरनाक बन कर उभरा है।

हॉर्न ऑफ अफ्रीका कहे जा रहे इथियोपिया और सोमालिया के अलावा केन्या और यूगांडा सीमा पर भी बड़ी तादाद में टिड्डियों की आबादी बढ़ रही है। इथियोपिया और सोमालिया 25 साल में सबसे बड़े टिड्डी हमले को झेल रहे हैं। वहीं, केन्या में 70 साल का सबसे विनाशकारी हमला है।

नहीं चेती दुनिया तो…
यूएन ने चेताया है कि अफ्रीकी महाद्वीप के टिड्डी वाले इलाके में अप्रैल तक इनकी एक और पीढ़ी हमले को तैयार होगी और जून तक इनकी आबादी अभी के 360 अरब की तुलना में 500 गुना होगी। इससे बड़े अन्न संकट और भुखमरी का सामना करना पड़ सकता है। आज दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती इनकी आबादी बढ़ने से रोकना है।

टिड्डियों से निपटने का सबसे कारगर तरीका कीटनाशक का छिड़काव है। लेकिन अफ्रीकी देश इन विमानों की कमी से जूझ रहे हैं। भारत में कीटनाशकों के छिड़काव के लिए ड्रोन की मदद भी ली गई।

  • 40% खेती नष्ट हो चुकी है पाकिस्तान में।
  • 1.30 करोड़ आबादी ईस्ट अफ्रीका में भुखमरी के करीब

कैसे हो रोकथाम
टिड्डियों की रोकथाम का सबसे वैज्ञानिक तरीका कीटनाशक का छिड़काव है। लेकिन बिना मार्गदर्शन के कीटनाशकों का छिड़काव स्थानीय जलस्रोतों को जहरीला बना सकता है। कीटनाशकों से मरी टिड्डियां खाने वाले पशु-पक्षियों पर भी संकट हो सकता है। माना जाता है कि टिड्डी शोर से डरती हैं, इसलिए परंपरागत रूप से किसान टिड्डियो को देखते ही बर्तन और तेज गाने बजाने लगते हैं। भारत में स्थानीय कृषि अधिकारियों की सलाह है कि जहां का प्रकोप है, वहां खेतों में गहरी जुताई करने की हिदायत है ताकि उनके अंडे नष्ट हो जाएं।

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