'देवस्थान की जमीन नीलामी पर चुप कैसे बैठें'

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पिछले हफ्ते तिरुपति बालाजी मंदिर की जमीन नीलाम करने के मसले को लेकर आंध्र प्रदेश की सियासत काफी गर्म रही। राष्ट्रीय स्तर पर उसका महत्व इसलिए बढ़ गया है कि उसमें बीजेपी कूद पड़ी है। बीजेपी-जनसेना गठबंधन ने इसका विरोध किया और फिर सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा। बीजेपी का जगन रेड्डी सरकार से टकराव जारी है। बीजेपी की कोशिश गैर टीडीपी-गैर वाईएसआर दलों के साथ एक वृहद गठबंधन तैयार करने की है। आंध्र प्रदेश के घटनाक्रम पर बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव और पार्टी के आंध्र प्रदेश प्रभारी सुनील देवधर से बात की नैशनल ब्यूरो में विशेष संवाददाता पूनम पाण्डे ने। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश:

तिरुपति बालाजी मंदिर की जमीन नीलाम करने का क्या विवाद है? बीजेपी क्यों इसमें कूदी?
आंध्र प्रदेश सरकार के तहत आने वाले तिरुपति तिरुमला डिवेलपमेंट बोर्ड ने मंदिर की जमीन को नीलाम करने का नोटिस निकाला था। उत्तराखंड और तमिलनाडु में भक्तों ने जो जमीन दान में दी थी, सरकार उसे नीलाम करना चाह रही थी। हमने इसका कड़ा विरोध किया। कोई सरकार देवस्थान की भूमि नीलाम कर दे तो हम चुप कैसे बैठ सकते हैं। हमारे विरोध को देखते हुए सरकार ने नीलामी के ऑर्डर को वापस लिया। हम फिर भी विरोध में डटे रहे और मांग की कि राज्य सरकार ऐसा कानून बनाए, जिससे कोई भी देवस्थान की किसी भी जमीन को बेच न पाए। साथ ही देवस्थानों की जितनी प्रॉपर्टी है, उसे सार्वजनिक किया जाए। जहां अतिक्रमण हुआ है, वहां लीगल एक्शन लिया जाए। अब सरकार ने दो दिन पहले वादा किया है कि हम देवस्थान की एक इंच जमीन भी नहीं बेचेंगे। हम किसी भी राज्य सरकार को नहीं बेचने देंगे।

लेकिन आपके विरोध के बीच सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट किया कि उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने भी तो देवस्थानों के ट्रस्ट को अपने नियंत्रण में लिया है?
ट्रस्ट कंट्रोल में लेना अलग बात है और मंदिर की जमीन को नीलाम करना दूसरी। आंध्र प्रदेश में मंदिर की जमीन को नीलाम करने का ऑर्डर निकला था।

कोरोना की वजह से आंध्र प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनाव टल गए, लेकिन जब चल रहे थे, तब विरोध काफी तीखा हो गया था, क्या वजह थी?
उन्होंने वहां बहुत गुंडागर्दी की। सरकार के अधिकारियों ने वाईएसआरसीपी के कार्यकर्ताओं की तरह ही काम किया। लगभग 80 पर्सेंट जगहों पर जबरदस्ती दूसरी पार्टी के उम्मीदवारों से नामांकन वापस करवाया गया। इसकी जांच होनी चाहिए।

एक वक्त तो यह लग रहा था कि जगन मोहन रेड्डी और बीजेपी की नजदीकियां बढ़ रही हैं, वह पीएम से मिलने भी आए थे। फिर क्या हुआ?
सभी मुख्यमंत्री पीएम से मिलने जाते हैं, ये सब प्रफेशनल रिलेशन हैं। मुख्यमंत्री के पीएम से मिलने या गृह मंत्री से मिलने का यह मतलब नहीं होता कि उनसे राजनीतिक करीबी है।

क्या टीडीपी और बीजेपी फिर से नजदीक आ सकती हैं?
कभी नहीं। जब तक चंद्रबाबू नायडू के कंट्रोल में तेलगू देशम पार्टी है, तब तक टीडीपी के साथ कोई गठबंधन होने की गुंजाइश नहीं है। जिस तरह से मोदी जी के खिलाफ उन्होंने झूठ बोला, जिस तरह से विश्वासघात करके अलायंस तोड़ा, उसके बाद अमित शाह ने कई बार साफ कहा है कि टीडीपी के लिए अभी हमारे दरवाजे पूरी तरह बंद हैं। टीडीपी और वाईएसआरसीपी, इन दोनों पार्टियों की तीन बातें ऐसी हैं, जिनसे ये दोनों पार्टियां आंध्र प्रदेश के लिए अत्यंत घातक हैं। पहली- ये दोनों पार्टियां भ्रष्ट हैं। दूसरी- ये दोनों पार्टियां परिवारवाद वाली पार्टी हैं। तीसरी- ये जातिवादी पार्टी हैं। ये दोनों पार्टियां आंध्र प्रदेश का नुकसान कर रही हैं।

बीजेपी का जनसेना से गठबंधन हुआ है। जनसेना एक छोटी पार्टी है। उससे बीजेपी को कितना फायदा होगा?
चुनाव के वक्त ऐसी स्थिति हो गई थी कि राज्य में बीजेपी एक अनटचेबल पार्टी बन गई थी। चंद्रबाबू नायडू ने सरकारी तंत्र का उपयोग करके नरेंद्र मोदी की सरकार को बदनाम किया। इसी वजह से बीजेपी वहां पांचवें नंबर की पार्टी बन गई थी। ऐसी परिस्थिति में बीजेपी के साथ कोई गठबंधन नहीं करना चाहता। लेकिन जैसे ही जनसेना के साथ अलायंस हुआ, यह अनटचेबिलिटी दूर हो गई। आंध्र प्रदेश की लोकल पार्टी ने बीजेपी के साथ अलायंस किया, जनसेना पार्टी के नेता पवन कल्याण की लोकप्रियता भी है और उनकी पार्टी को करीब सात पर्सेंट वोट भी मिले। यह वोट कम नहीं होता। इसलिए हर एक फ्रेंड जरूरी होता है। उन्होंने नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व पर विश्वास दिखाकर, हिंदुत्व की विचारधारा पर विश्वास दिखाकर बिना किसी कंडीशन के अलायंस किया है। हम मिलकर आंध्र प्रदेश की जनता के हित में काम करेंगे। अभी हम बिना कोई राजनीति किए कोरोना वायरस से लड़ने में राज्य सरकार को पूरा सहयोग देंगे।

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