तिरंगे में लिपटा शरीर, पर न शहादत के नारे हैं, न आंसुओं का सैलाब… लद्दाख सीमा पर एक जवान चुपचाप देश के लिए कुर्बानी दे गया। लद्दाख में चीनियों से मोर्चा लेने के लिए देश की सीमा पर डटे कुछ जवान ऐसे भी हैं, जिसके बारे में किसी को भी शायद ही कुछ ज्यादा जानकारी हो। ऐसे ही एक जवान भारत मां की हिफाजत करते-करते हमेशा के लिए गया। उसका पार्थिव शरीर तिरंगे के कफन से ढका है मगर चारों ओर सन्नाटे का शोर है। वहां पर मौजूद उसके परिवार वालों की आंखों में आंसू तो थे मगर अफसोस के नहीं बल्कि फक्र के…
भारत-चीन () के बीच अब तनाव बढ़ता ही जा रहा है। भारतीय जवानों ने हर बार चीन के नापाक मंसूबों का नेस्तानाबूद कर दिया। चीन पूर्वी लद्दाख इलाके के साथ पैंगोंग झील (India China Pangong Lake) के आसपास अपनी गतिविधियां बढ़ाना चाह रहा था लेकिन शायद वो भूल गया था कि यहां पर भारतीय सेना के जांबाज लड़ाके तैनात हैं। सरकार ने 31 अगस्त को बताया कि पैंगोंग झील के पास चीनी सेना घुसपैठ करने के इरादे से आई थी जहां पर दोनों सेनाओं के बीच भिड़ंत हो गई। रिपोर्ट्स की मानें तो भारतीय जवानों ने चीनियों के दांत खट्टे कर दिए और वो भागने को मजबूर हो गए। इस संघर्ष में SSF का एक जवान शहीद हो गया।
गुमनाम देश के लिए काम करते हैं SFF जवानये यूनिट एक बहुत ही गुप्त होती है इसलिए इसकी जांबाजी की खबरें बाहर नहीं आती हैं। 29-30 अगस्त को चीन के सैनिकों के साथ हुई झड़प में एक जवान शहीद हो गया। हालांकि आधिकारिक तौर पर इस पर कुछ भी नहीं कहा गया। लद्दाख के पैंगोंग लेक के दक्षिणी किनारे से लगे इलाके में भारत के ‘स्पेशल फ्रंटियर फोर्स’ की विकास रेजिमेंट के कंपनी लीडर नीमा तेंजिन का शनिवार रात एक सैनिक अभियान के दौरान मौत हो गई।
शहीद हुआ नीमा तेंजिनऑफिसर नीमा तेंजिन का तिरंगे में लिपटा शव मंगलवार सुबह लेह शहर से छह किलोमीटर दूर चोगलामसार गांव लाया गया। तिब्बत की निर्वासित-संसद की सदस्य नामडोल लागयारी के मुताबिक़, यहां पर तिब्बती-बौद्ध परंपराओं के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार किया गया। बीबीसी से बातचीत के दौरान नामडोल लागयारी के बताया कभी स्वतंत्र-मुल्क लेकिन अब चीन के क्षेत्र तिब्बत के नीमा तेंज़िन भारत के स्पेशल सैन्यदल ‘स्पेशल फ्रंटियर फोर्स’ (SFF) की विकास रेजिमेंट में कंपनी लीडर थे और दो दिन पहले भारतीय टुकड़ी और चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी के बीच पैंगोंग झील क्षेत्र में हुई भिड़ंत में उनकी जान चली गई।
60 वर्ष पुराना इतिहासपीएलए का वेस्टर्न थियेटर कमांड अपनी सलामी स्लाइसिंग चाल के साथ गैलवान घाटी में चला गया। भारतीय पक्ष से प्रतिरोध और जवाबी कदम का नेतृत्व एसएफएफ ने किया है। यह एक बल है जिसके पीछे लगभग 60 वर्षों का इतिहास है। शीर्ष-गुप्त गुरिल्ला रेजिमेंट, जिसे प्रतिष्ठान 22 के रूप में भी जाना जाता है (दो-दो के रूप में पढ़ें), 1962 में नेहरू सरकार द्वारा चीन के साथ युद्ध के दौरान उठाया गया था।
कठिन इलाकों में तैनातीSFF को उत्तराखंड में चकराता से बाहर स्थित कठिन हिमालयी पहाड़ी इलाके में दुश्मन के पीछे गुप्त ऑपरेशन में शामिल होने का काम सौंपा गया था। भारतीय खुफिया अधिकारियों ने इस शीर्ष गुप्त इकाई को भारत में तिब्बती शरणार्थियों और खूंखार खम्पा योद्धाओं को शामिल करने के लिए चुशी गंगद्रुक के तिब्बती गुरिल्ला सेनानियों की मदद ली। इस बल की स्थापना के भारत-चीन युद्ध के ठीक एक सप्ताह बाद की गई।
इस यूनिट ने कहां-कहां दिखाया पराक्रमइस यूनिट ने उन्होंने 1971 में बांग्लादेश युद्ध, 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार, 1984 में सियाचिन ग्लेशियर और 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल युद्ध को रोकने के दौरान चटगाँव में पाकिस्तानी सेना को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस यूनिट के प्रत्येक कमांडो को पहाड़ी युद्ध, छापामार युद्ध, गुप्त अभियान और दूसरों के बीच खुफिया जानकारी जुटाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। एक दिन, निश्चित रूप से एक दिन, हम चीनियों को एक सबक सिखाएंगे ‘उनका रेजिमेंटल गीत कहते हैं।