ने मंगलवार को कहा कि वह ल़ॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी के भुगतान संबंधी आदेश देकर बजटीय या वित्तीय क्षेत्र में प्रवेश नहीं करेगा। बता दें कि मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर, स्वामी अग्निवेश और कई अन्य लोगों ने शीर्ष न्यायालय में अपील दायर कर केंद्र सरकार को आदेश देने की मांग की थी।
अदालते केंद्र को पैसा देने के लिए निर्देश नहीं दे सकतीं
एक अन्य जनहित याचिका ने राज्य सरकारों को रिक्शा चालकों, ऑटो चालकों आदि को न्यूनतम मजदूरी का भुगतान करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। जिसपर सुनवाई करते हुए जस्टिस एनवी रमना, एसके कौल और बीआर गवई की पीठ ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि अदालतें केंद्र को कैसे निर्देश दे सकती हैं वे इसके लिए राज्यों को पैसा दे।
केंद्र और राज्यों में चुनी हुई सरकारें
कोर्ट ने कहा कि क्या हम ऐसे मामलों में विशेषज्ञ हैं? राज्यों और केंद्र में चुनी हुई सरकारें हैं जिन्हें शासन करने का जनादेश है। हम वित्तीय सहायता और धन की पर्याप्तता या अपर्याप्तता के मुद्दों में नहीं पड़ रहे हैं।
प्रशांत भूषण ने यह दी दलील
वहीं, वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने 11,000 प्रवासी कामगारों पर किए गए एक अध्ययन का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि अध्ययन में लगभग 90 फीसदी कामगारों ने कहा कि उन्हें न तो सरकारों से कोई राशन मिला है और न ही खाना मिला है। उन्होंने कहा कि 2011 की जनगणना में प्रवासी मजदूरों की अनुमानित आबादी 4 करोड़ है, लेकिन केंद्र ने कहा कि इसने 15 लाख को आश्रय और भोजन उपलब्ध कराया है।
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