चुनाव हारे लेकिन मामा की लोकप्रियता बरकरारहिंदुस्तान की नक्शे पर मध्य प्रदेश बिल्कुल बीचों-बीच आता है। यही कारण है कि इस सूबे को हिंदुस्तान का दिल कहा जाता है। 15 महीने पहले जब विधानसभा चुनाव हुए तब 15 सालों से सत्ता पर काबिज बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन कहा जा रहा था कि की लोकप्रियता में बिल्कुल भी कमी नहीं आई थी। मामा का दरबार सत्ता से बेदखल होने के बाद भी सजता रहा। मामा अपने चिर परिचित अंदाज से घर से बाहर आते हैं और जनता के बीच आकर बैठ जाते हैं। फिर शुरू होता है शिकायतों का सिलसिला। मामा तुरंत मोबाइल निकालकर अधिकारियों को लाइन पर लेते हैं और लोगों के रुके हुए काम करने को बोलते हैं।
बिना सरकार के भी लोगों की समस्याएं सुनते थे शिवराजशिवराज सिंह चौहान की यही छवि जनता के भीतर घुसी हुई है। बीजेपी आलाकमान भी शिवराज सिंह चौहान को तवज्जों देना नहीं भूलता। पिछले 15 महीनों में कई बार ऐसी नौबत आई जब लगा कि कांग्रेस के हाथ से सत्ता छिन सकती है लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। इसका कारण है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ भी कम बड़े राजनीतिज्ञ नहीं हैं। लेकिन इस बार उनकी एक नहीं चली। स्थानीय जानकारों के मुताबिक बीजेपी ने पूरी फील्डिंग सेट करने के लिए पांच नेताओं को कमान सौंपी थी। इन पांच नेताओं में सबसे अहम रोल था भाजपा प्रवक्ता जफर इस्लाम और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का। जफर इस्लाम को कमान सौंपी गई थी कि वो ज्योतिरादित्य सिंधिया को लाइनअप करें और नरेंद्र सिंह तोमर ने बाकी का काम साधा।
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इन नेताओं ने बनाए सभी समीकरणकहा जाता है कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार तख्ता पलट करने में तोमर का सबसे बड़ा हाथ रहा है। इस कद्दावर नेता ने इस बार सियासत की ऐसी बिसात बिछाई कि भाजपा कांग्रेस को तोड़ने में कामयाब हो गई। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर हैं। जमीन से जुड़े नेता नरेंद्र सिंह तोमर का मध्यप्रदेश के ग्वालियर-चंबल संभाग में काफी प्रभाव है और कांग्रेस के ज्यादातर बागी विधायक भी इन्हीं संभाग से आते हैं, जिनके बगावत पर उतरने के कारण कमलनाथ सरकार संकट में आ गई है।
- 2018 के विधानसभा चुनावों में शिवराज के नेतृत्व में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। और इसी हार के साथ शिवराज से मुख्यमंत्री की कुर्सी छिन गई। हालांकि शिवराज बुधनी से जीत कर विधायक बने हुए हैं।
- 2013 शिवराज ने सांसद में तीसरी बार लगातार जीत दर्ज की और तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। यह राज्य के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले मुख्यमंत्री बन चुके हैं।
- 2008 इन्होंने बीजेपी को विधानसभा चुनावों में लगातार दूसरी जीत के लिए नेतृत्व किया और 12 दिसंबर, 2008 को मुख्यमंत्री का पद संभाला।
- 2006 इन्होंने 1990 में राजनीतिक यात्रा शुरू करते हुए बुद्धनी से असेंबली में उपचुनाव जीता।
- 2005 इन्हें 2005 में बीजेपी, मध्य प्रदेश के अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।
- 29 नवंबर, 2005 को, इन्हें राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में निर्वाचित किया गया।
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नरोत्तम मिश्रा का भी रहा योगदानइन नेताओं के अलावा नरोत्तम मिश्रा का कम योगदान नहीं था। इस नेता को बीजेपी का मैनेजर कहा जाता है। बीजेपी का जितना भी मैनेजमेंट वाला काम होता है वो इन्ही के मत्थे होता है। कहा जाता है कि इस पूरी उठापटक में मिश्रा का भी बराबर का योगदान रहा है। बाकी शिवराज सिंह चौहान ने पहले से ही पूरी पिच तैयार कर रखी थी।
छात्र राजनीति से उठे जेल भी गएशिवराज सिंह चौहान छात्र राजनीति में कदम रखने वाले नेता हैं। इन्होंने पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता के रूप में अपनी सेवाएं शुरू कीं। वे 13 वर्ष की आयु में 1972 में आरएसएस में शामिल हुए और तब से लेकर आज तक वे अलग-अलग स्वरूपों में अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। वे मध्य प्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट से पांच बार सांसद रह चुके हैं। शिवराज इमरजेंसी में जेल भेजे गए थे। बाहर आकर एबीवीपी के संगठन मंत्री बना दिए गए।
बुधनी से जीते चुनाव1990 में हुए विधानसभा चुनाव में शिवराज में युवा मोर्चा वालों को 23 टिकिटें दिलाईं। यहीं से इस युवा नेता का नाम और तेजी से आगे आने लगा। शिवराज का नाम तय था कि ये बुधनी से लड़ेंगे लेकिन इसकी भूमिका बनाई 1989 में विदिशा से सांसद बने राघवजी ने। राघवजी को दिल्ली की राह पकड़नी थी। तो वो इलाके में अपने लोग बैठाना चाहते थे। शिवराज का सितारा जब लगातार मज़बूत हो रहा था, राघवजी की उनसे करीबी रही थी। तो राघवजी की सलाह रही कि शिवराज बुधनी से लड़ें। ये एक फंसी हुई सीट थी। लेकिन शिवराज लड़े और जीते।