मैसिव टीचर्स ट्रेनिंग ही क्लासरूम तक पहुंचा पाएगी NEP

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नई दिल्ली
स्कूल के एजुकेशन सिस्टम को नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) ने एक ग्लोबल विजन दिया। शिक्षाविदों का कहना है कि एजुकेशन के कई जरूरी सेक्टर को इसने बखूबी पकड़ा है मगर इसे लागू करने में कई बड़ी चुनौतियां सामने आने वाली हैं। एजुकेशन एक्सपर्ट्स का मानना है कि प्राइमरी से लेकर सेकंडरी लेवल तक की पढ़ाई हो या फिर बोर्ड एग्जाम का रूप बदलने का प्लान, इन सबके लिए सबसे जरूरी है टीचर्स की क्वॉलिटी ट्रेनिंग। अगर 2022 तक इस पॉलिसी के कुछ पहलुओं को क्लासरूम तक पहुंचाना है, तो जल्द ही टीचर्स ट्रेनिंग का फ्रेमवर्क तैयार करना होगा।

ज्यादातर टीचर्स ट्रेंड नहीं, ट्रेनिंग बनेगा चैलेंज: एक्सपर्ट्सएक्सपर्ट्स का कहना है कि यह पॉलिसी शिक्षा में हर सेक्टर में आधारभूत बदलाव की संभावनाएं लेकर आई है। सीबीएसई के पूर्व चेयरमैन अशोक गांगुली कहते हैं, नेशनल एजुकेशन पॉलिसी बहुत सारे बदलाव लाई है और इन्हे लागू करने के लिए टीचर्स का माइंडसेट और स्किलसेट दोनों पर ही काम करना होगा। 12 साल की स्कूली व्यवस्था अब 15 साल की होगी। प्री स्कूल पर फोकस किया गया है, देशभर में एक पैटर्न पर करिकुलम रहेगा। प्रशासनिक तौर पर इतनी बड़े लेवल पर यह कैसे संभव होगा यह आगामी सालों में ही पता चलेगा। बच्चों के विकास के लिए यह एक्टिविटी पर आधारित लर्निंग, एक्सपेरिमेंटल और इनोवेटिव लर्निंग लेकर आई है। इससे बच्चों को बहुत मदद मिलेगी मगर लागू करने के लिए ट्रेंड टीचर्स चाहिए।

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पुराना माइंडसेट बदलने के लिए एक्सपर्ट प्लान जरूरीनई पॉलिसी का विजन प्राइमरी लेवल पर काफी फोकस करता है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के एजुकेशन डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉ पंकज अरोड़ा कहते हैं, पॉलिसी ने प्राइमरी यानी बच्चे की फाउंडेशन पर ध्यान दिया है। यह फायदेमंद तभी होगी जब इसे ग्राउंड लेवल पर लागू किया जाए। आंगनवाड़ियों की स्थिति खराब है और अगर यह सुधरती नहीं तो फायदा नहीं। डॉ पंकज कहते हैं, टीचर्स की ट्रेनिंग बहुत जरूरी है। प्री-सर्विस टीचर एजुकेशन में तो यह नैशनल करिकुलम फॉर टीचर एजुकेशन 2021 के साथ आ जाएगा मगर 80 से 90% टीचर्स अभी क्लासरूम में पढ़ा रहे हैं और हालात खराब है। पॉलिसी तैयार करने वाले एक्सपर्ट्स के वीडियो लेक्चर, मूक्स हर डिस्ट्रिक्ट-ब्लॉक तक क्षेत्रीय भाषाओं में पहुंचाए जा सकते हैं, जिन्हें लोकल एक्सपर्ट टीचर्स को समझाए। क्वालिटी ओरिएंटेशन, वर्कशॉप, ट्रेनिंग प्रोग्राम लाने होंगे।

शिक्षाविदों का मानना है कि पॉलिसी ‘क्लोज्ड एंडेड करिकुलम’ से ‘ओपन एंडेड करिकुलम’ की ओर ले जा रही है। अशोक गांगुली कहते हैं, इसने मिडल और सेकंडरी लेवल पर सामयिक विषयों जैसे एआई, एनवायरनमेंटल एजुकेशन, ऑर्गेनिक लिविंग पर फोकस किया है। यह 21वीं शताब्दी की स्किल्स पर भी जोर दे रही है, रटने वाली लर्निंग को खत्म किया जाएगा। इसके अलावा, बोर्ड एग्जामिनेशन के डिजाइन बदलने की बात हो रही है। सिलेबस कम किया जाएगा। कुछ काम ना आने वाली चीजों को हटाकर इंटरेक्टिव क्लास, एक्समेरिमेंटल लर्निंग और वर्तमान में जो टॉपिक हैं – नैनोटेक्नॉलजी, साइबर सिक्यॉरिटी, जिनॉमिक्स जैसी नवीनतम जानकारी दी जाएगी। इसके अलावा क्वेश्चर पेपर अलग ढंग से सेट होंगे, एक अच्छी मार्किंग स्कीम अएगी, इवैल्यूशन का तरीका बदलेगा। इसके अलावा लोकल लैँग्वेज में पढ़ाने के लिए हमें ट्रेंड टीचर्स की जरूरत आएगी। वह कहते हैं, इन सबसे साथ बड़ी चुनौती सामने हैं क्योंकि हमारे ज्यादातर टीचर्स या तो सेमी स्किल्ड हैं या अनस्किल्ड। 2022 तक क्लासरूम में स्किल पर आधारित लर्निंग लागू करनी की बात की गई है, मगर इसके लिए पहले देशभर में मैसिव टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम लाना होगा ताकि उनके माइंडसेट और स्किलसेट को ट्यून किया जा सके। अभी जो माइंडसेट है वो यही है कि हमने जैसे पढ़ा है वैसे ही हम पढ़ाएंगे। इसे हटाना होगा।

पहले भी ग्राउंड लेवल पर नहीं हुआ काम!टीचर्स ट्रेनिंग का मुद्दा दिल्ली के एजुकेशन मिनिस्टर मनीष सिसोदिया ने भी उठाया है। सिसोदिया कहते हैं, नई पॉलिसी के तहत अब बीएड चार साल का होगा, क्वालिटी टीचर तैयार करने के लिए यह अच्छी पहल है। मगर 30 करोड़ बच्चों को अभी 80 लाख टीचर्स पढ़ा रहे हैं। इन पर कैसे पॉलिसी काम करेगी, यह इसमें नहीं है। टीचर्स को नैशनल लेवल की ट्रेनिंग जरूरी है। टीचर्स की ट्रेनिंग पर काम नहीं किया इसलिए प्रोग्रेसिव सोच से लाया गया कॉम्प्रिहेंसिव इवैल्यूशन भी लागू नहीं हो पाया था और अंत में शानदार आइडिया ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ विलेन बनकर खड़ा हो गया था।

डॉ पंकज अरोड़ा कहते हैं, जब नैशनल करिकुलम फ्रेमवर्क 2005 आया था, उस वक्त भी पॉलिसी मेकर्स ने क्वालिटेटिव ड्राफ्ट तो दिया मगर यह क्लासरूम तक यह नहीं पहुंचा। वह कहते हैं, नई पॉलिसी अगले 20 साल के लिए गाइड कर रही है। इसका असर अभी से नहीं दिखेगा। पूरी पॉलिसी पर टीचर्स का माइंडसेट करने में ही करीब 5 साल लग जाएंगे।

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