इस्लामाबाद,पाकिस्तान:- लाहौर की जिला एवं सत्र अदालत ने सोमवार को ईशनिंदा के नाम पर निश्तर कॉलोनी के एक निजी स्कूल की महिला प्रिंसिपल को मौत की सजा सुनाई गई है। इसके साथ ही कोर्ट ने महिला पर पीकेआर फाइन यू/एस 295-सी पीपीसी के तहत 50,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है।
प्रिंसिपल को 2013 से जुड़े ईशनिंदा के एक मामले में दोषी करार दिया गया है। महिला ने पैगंबर मोहम्मद को इस्लाम का अंतिम पैगंबर मानने से इनकार कर दिया था और खुद को इस्लाम का पैगंबर बताया था। इसी बात को लेकर एक स्थानीय मौलवी ने केस दायर किया था, जिस पर अब फैसला आया है।
तनवीर के वकील मुहम्मद रमजान ने दलील दी थी कि उनके मुवक्किल की ‘मानसिक स्थिति ठीक नहीं है’ और अदालत को इस तथ्य पर गौर करना चाहिए।अभियोजन पक्ष द्वारा अदालत में सौंपी गई ‘पंजाब इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ’ की एक मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में कहा गया कि ‘संदिग्ध मुकदमा चलाने के लिए फिट है क्योंकि उसकी मानसिक स्थिति बिल्कुल ठीक है। इसके आधार पर कोर्ट ने महिला के वकील की दलीलों को खारिज कर दिया।
अल्पसंख्यकों को पीड़ित करने का हथियार ‘ईशनिंदा’
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने के लिए हमेशा ईशनिंदा कानून का उपयोग किया जाता है। तानाशाह जिया-उल-हक के शासनकाल में पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून को लागू किया गया। पाकिस्तान पीनल कोड में सेक्शन 295-बी और 295-सी जोड़कर ईशनिंदा कानून बनाया गया। दरअसल पाकिस्तान को ईशनिंदा कानून ब्रिटिश शासन से विरासत में मिला है। 1860 में ब्रिटिश शासन ने धर्म से जुड़े अपराधों के लिए कानून बनाया था जिसका विस्तारित रूप आज का पाकिस्तान का ईशनिंदा कानून है।