लोहिया से मुलायम..'1958 से चीन दुश्मन नं.1'

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सुधाकर सिंह, लखनऊ
लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत और चीन के बीच खूनी संघर्ष के बाद हालात बिगड़ गए हैं। 45 साल में पहली बार एलएसी पर भारतीय सेना का कोई जवान शहीद हुआ है। पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 20 जवानों की शहादत से देश स्तब्ध है। चीन के खिलाफ हर ओर गुस्से का माहौल है। 1958 में जब चीन ने तिब्बत में हिमाकत की थी तभी समाजवादी विचारक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने चीन के खतरे से आगाह किया था। जॉर्ज फर्नांडीस से लेकर मुलायम सिंह यादव तक सभी चीन को दुश्मन नंबर एक बताते रहे हैं।

जब लोहिया ने नेहरू को चेताया
1958 में तिब्बत पर चीन ने आक्रमण किया। इस हमले के खिलाफ डॉक्टर लोहिया ने कड़ा बयान दिया था। लोहिया ने चीन के इस आक्रमण को शिशु हत्या की संज्ञा दी थी। चीन के हमले से पहले तक तिब्बत आजाद था। तब भारत और तिब्बत की सीमाएं जुड़ी थीं। लेकिन बदली हुई भौगोलिक परिस्थितियों में ये इलाका चीन के कब्जे में आ गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को लोहिया ने इस मुद्दे पर चेताया भी था। उन्होंने चीनी कब्जे को मान्यता नहीं देने की अपील की थी।

लोहिया क्यों चीन के कम्युनिज्म के खिलाफ थे?
वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने समाजवाद और साम्यवाद का जिक्र करते हुए कहा, ‘1948 में चीन में कम्युनिस्ट राज आया। चीन उस वक्त रिकगनाइज ही नहीं हुआ था। जाहिर है चीनी कम्युनिज्म किसानों के आंदोलन से आया। रूस की क्रांति मजदूरों की क्रांति थी। नेहरू की चीन नीति पर लोहिया ने एक आर्टिकल लिखा और सवाल उठाते हुए कहा कि नेहरू कर क्या रहे हैं। स्टेट का कॉन्सेप्ट लोहिया को कभी स्वीकार नहीं था। सोशलिज्म कम्युनिज्म से अलग था। लोहिया का समाजवाद इस तरह का नहीं था जिसमें स्टेट सारी शक्तियां हासिल कर ले। वह हमेशा चीन का विरोध करते थे। वही मुलायम सिंह भी जानते थे।’

पढ़ें: नेहरू अमेरिका की तरफ फिसलने लगे फिर…
वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने आगे बताया, ‘ये सिलसिला 1958 में तिब्बत से शुरू हुआ। उस वक्त लोहिया बहुत मुखर थे। कम्युनिस्ट शासन में ये धारणा थी कि चीन में सर्वहारा क्रांति अधिनायकवाद के बाद स्टेट क्लासलेस हो जाएगा। स्टेट ही सब कुछ देखेगा। उसमें माओत्से तुंग ने कुछ बदलाव किया। उधर नेहरू जब अमेरिका की तरफ फिसलने लगे तब चीन की नाराजगी और बढ़ी। खासकर दूसरा आम चुनाव हुआ तो कृषि नीति अमेरिका की सलाह पर बनी। सोशलिस्ट भारत में एक धारा थी जो चल नहीं पाई। शुरू के दौर में कम्युनिज्म ने लुभाया। सोशलिज्म उस तरह पनप नहीं पाया। कम्युनिज्म का कार्ल मार्क्स ने जैसा डॉक्युमेंटेशन किया वैसा लोहिया का नहीं था।’

अक्साई चिन पर जब नेहरू के सामने उतार दी टोपी…
वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने उस दौर में संसद में एक दिलचस्प वाकये का जिक्र करते हुए कहा, ‘यह बात सच है कि नेहरू ने चीन को हल्के में लिया। संसद में उन्होंने कहा कि अक्साई चिन में घास का एक तिनका भी नहीं उगता। तब महावीर त्यागी ने टोपी उतारते हुए कहा कि नेहरू जी आप भी टोपी उतार दीजिए…मेरे सर पर कुछ नहीं है। कहिए तो सर कटवा दें। इतना कहते हुए वह नेहरू की तरफ देखने लगे। उनका आशय था कि हमारे-आपके सर पर कुछ नहीं उगता है तो क्या इसको कटवा दिया जाए।’

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‘चीन की नीतियां शुरू से विस्तारवाद की रही हैं’
लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार संजय पांडेय कहते हैं, ‘शुरू से ही चीन की नीतियां विस्तारवाद की रही है। इसकी कई वजहें हैं। एक तो विचारधारात्मक है। साम्यवाद तभी बढ़ सकता है, जब उसकी एक ग्लोबल अपील होगी। मार्क्स ने कहा था कि दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ। एक ऐसा वक्त आएगा जब राज्य खत्म हो जाएंगे और दुनिया एक हो जाएगी। मार्क्स कहते थे कि राज्य एक आवश्यक बुराई है। लेनिन, स्टालिन और माओत्से तुंग ने भी साम्यवाद की विचारधारा को आगे बढ़ाया। माओ ने तो कहीं आगे बढ़ते हुए मार्क्स के विचार को नया धरातल दे दिया।’

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आखिर चीन क्या संदेश देना चाहता है?
चीन और भारत की तनातनी पर वरिष्ठ पत्रकार संजय पांडेय कहते हैं , ‘कम्युनिस्ट देश अपने सिद्धांतों को लागू करने में हिंसा का सहारा लेने में नहीं चूकते हैं। शुरू से ही विस्तारवाद की राजनीति उन्होंने अपनाई है। सैद्धांतिक रूप से तीसरी क्षेत्रीय ताकत बनने और यूएस के बराबर खड़ा होने की उसकी आकांक्षा है। लेकिन वह भारत को एक राइवल ग्रुप के रूप में देखता है। चीन अपनी राह में भारत को एक रोड़ा मानता है। वह भारत को कमजोर करने की कोशिश है। ये मेसेज देने की कोशिश कर रहे हैं कि एक सीमा के आगे नहीं बढ़ने देंगे।’

डोकलाम पर जब मुलायम बोले- चीन सबसे बड़ा विरोधी
लोहिया के शिष्य और पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव भी चीन के बारे में सरकार को चेताते रहे हैं। उन्होंने बार-बार कहा कि पाकिस्तान नहीं चीन ही देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है। जुलाई 2017 में डोकलाम पर संसद में चर्चा के दौरान मुलायम सिंह ने कहा, ‘तिब्बत हमारा पहरेदार है। चीन हमला करेगा तो पहले तिब्बत से होकर आएगा। चीन षडयंत्र कर रहा है हिंदुस्तान के खिलाफ। पाकिस्तान को भी अपने कब्जे में लेगा। सारी खबर सरकार को होगी। प्रधानमंत्री जी को होगी होम मिनिस्टर को भी हो सकती है। एटम बम चीन ने पाकिस्तान की जमीन में गाड़ दिया है। चीन हमारा दुश्मन है पाकिस्तान नहीं। पाकिस्तान हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। सबसे बड़ा हिंदुस्तान का विरोधी और दुश्मन कोई है तो चीन है।’

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1998 में फर्नांडीस ने चीन पर बयान से चौंकाया
चीनी खतरे पर समाजवादी नेता बार-बार आगाह करते रहे हैं। 22 साल पहले अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार में जॉर्ज फर्नांडीस रक्षा मंत्री थे। मई 1998 में उन्होंने चीन को भारत का दुश्मन नंबर एक बताते हुए चौंका दिया था। दरअसल फर्नांडीस को सिक्किम और भूटान दोनों को लेकर ड्रैगन की खतरनाक चाल का अंदेशा था। उनकी सोच गलत साबित नहीं हुई। क्योंकि 2017 में मोदी सरकार के कार्यकाल में डोकलाम में चीन ने एक बार फिर अपने नापाक इरादे जाहिर किए।

डोकलाम में 73 दिनों तक चला था गतिरोध
डोकलाम में अवैध निर्माण के चलते भारत और चीन की सेना 73 दिनों तक आमने-सामने आ गई थीं। विवाद तब पैदा हुआ जब चीनी सैनिक इस क्षेत्र में अवैध रूप से सड़क का निर्माण कर रहे थे। भारत इस क्षेत्र को भूटान का मानता है जबकि चीन इसे अपना हिस्सा बताता है। चीन के इस निर्माण से भारत की सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया क्योंकि चीन के इस निर्माण के बाद चीनी सेना की पहुंच रणनीतिक रुप से महत्वपूर्ण चिकन नेक तक हो जाती। चिकन नेक, पूर्वी भारत को बाकी भारत से जोड़ने वाला एक गलियारा है। इसकी सबसे कम चौड़ाई केवल 17 किलोमीटर है जबकि यह 200 किलोमीटर लंबा है। भारत ने इस गतिरोध को कूटनीतिक तरीके से हल किया। चीनी और भारतीय अधिकारियों की कई दिनों तक चली लगातार बैठक के कारण इस गतिरोध का हल निकल सका। चीन ने अपने सैनिक और सड़क बनाने की मशीनें विवादित क्षेत्र से हटा ली थीं।

‘चीन के उलट भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद’
मुलायम सिंह के रुख पर वरिष्ठ पत्रकार संजय पांडेय कहते हैं, ‘सोशलिज्म की बात माओ भी करते थे। लेकिन समाजवादी लोग चीन का इसलिए विरोध करते हैं क्योंकि भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद है। वे चीन की प्रवृत्ति को समझते थे। वह हांगकांग में मनमानी रहा है। ताइवान पर उसकी नजर है। चीन की विस्तारवादी नीतियों को वे अच्छी तरह परखते थे। उसकी नीयत से वाकिफ थे और चीन की चाल को समझते थे। नेहरू जी के काल में 1962 भारत-चीन युद्ध में इसी वजह से उनसे समाजवादियों का मतभेद था। इसीलिए वे चीन को दुश्मन नंबर एक बताते रहे हैं।’

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