तेंडुलकर ने अपने सौ शतकों में से पहला शतक 14 अगस्त 1990 को लगाया। वह पांचवें दिन 119 रन बनाकर नाबाद रहे और भारत को हार से बचाया। उन्होंने अपने पहले शतक की 30वीं सालगिरह पर कहा, ‘मैंने 14 अगस्त को शतक बनाया था और अगला दिन स्वतंत्रता दिवस था तो वह खास था। अखबारों में हेडलाइन अलग थी और उस शतक ने सीरीज को जीवंत बनाए रखा।’
सियालकोट में वकार की गेंद ने किया मजबूतयह पूछने पर कि वह कैसा महसूस कर रहे थे, उन्होंने कहा, ‘टेस्ट बचाने की कला मेरे लिए नई थी।’ उन्होंने हालांकि कहा कि वकार युनूस () का बाउंसर लगने के बाद नाक से खून बहने के बावजूद बल्लेबाजी करते रहने पर उन्हें पता चल गया था कि वह मैच बचा सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘सियालकोट में मैंने चोट लगने के बावजूद 57 रन बनाए थे और हमने वह मैच बचाया जबकि चार विकेट 38 रन पर गिर गए थे। वकार का बाउंसर और दर्द में खेलते रहने से मैं मजबूत हो गया।’
गुरु आचरेकर की ट्रेनिंग ने किया कमालमैनचेस्टर टेस्ट में भी डेवोन मैल्कम ने तेंडुलकर को उसी तरह की गेंदबाजी की थी। तेंडुलकर ने कहा, ‘डेवोन और वकार उस समय सबसे तेज गेंदबाज हुआ करते थे। मैंने फिजियो को नहीं बुलाया, क्योंकि मैं यह जताना नहीं चाहता था कि मुझे दर्द हो रहा है। मुझे बहुत दर्द हो रहा था।’ उन्होंने कहा, ‘मुझे शिवाजी पार्क में खेलने के दिनों से ही शरीर पर प्रहार झेलने की आदत थी। आचरेकर सर हमें एक ही पिच पर लगातार 25 दिन तक खेलने को उतारते थे जो पूरी तरह टूट फूट चुकी होती थी। ऐसे में गेंद उछलकर शरीर पर आती थी।’
अविश्वसनीय था उस मैच में प्रदर्शनयह पूछने पर कि क्या उन्हें आखिरी घंटे में लगा था कि टीम मैच बचा लेगी, उन्होंने कहा, ‘बिल्कुल नहीं। हम उस समय क्रीज पर आए जब छह विकेट 183 रन पर गिर चुके थे। मैंने और मनोज प्रभाकर ने साथ में कहा कि यह हम कर सकते हैं और हम मैच बचा लेंगे।’ उस मैच की किसी खास याद के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, ‘मैं सिर्फ 17 साल का था और मैन ऑफ द मैच पुरस्कार के साथ शैंपेन की बोतल मिली थी। मैं पीता नहीं था और मेरी उम्र भी नहीं थी। मेरे सीनियर साथियों ने पूछा कि इसका क्या करोगे।’ उन्होंने बताया कि उस शतक के बाद उनके साथी खिलाड़ी संजय मांजरेकर ने उन्हें सफेद कमीज तोहफे में दी थी और वह भावविभोर हो गए थे।