नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में नेबरहुड स्कूलिंग के जरिए शिक्षा में प्रगति, बालिकाओं के स्कूल आने में बढ़ोतरी, जन्मदर में भारी कमी को देखते हुए स्थायी शिक्षकों की भर्ती को बंद करने की अनुमति दे दी है।
राज्य में नियोजित शिक्षकों की संख्या पांच लाख है जबकि नियमित शिक्षक 60 हजार ही हैं। इस कैडर को सरकार ने डाइंग कैडर कहा है जिसे बंद किया जा रहा है। सरकार ने कहा कि नियमित शिक्षकों की भर्ती में राज्य से बाहर के लोगों के आने की आशंका रहती है, इस भर्ती में समय लगता है। वहीं भर्ती के बाद उनके ट्रांसफर पोस्टिंग का मुद्दा रहता है। जबकि नियोजित शिक्षकों में यह समस्या नहीं है, एक तो इनकी भर्ती जल्द होती है, क्योंकि ये भर्ती पंचायत, ब्लॉक, नगर पंचायत और स्थानीय निकाय करते हैं तथा स्थानीय उम्मीदवारों को ही भर्ती किया जाता है।
इस फैसले का दूरगामी असर है। क्योंकि केंद्र सरकार ने भी इसके कारण 36,998 करोड़ रुपये की सालाना बचत कर ली है, जो उसे राज्यों के शिक्षकों की वेतन विसंगति दूर करने के लिए देनी पड़ती। देश के हर राज्य में आरटीई की जरूरतों को पूरा करने के लिए शिक्षा मित्रों और नियोजित शिक्षकों (अस्थायी शिक्षकों) को रखा गया है।
इस फैसले से बिहार सरकार को 54,000 करोड़ रुपये की बचत भी हुई है जो उसे नियोजित शिक्षकों को नियमित शिक्षकों के बराबर वेतन देने पर एरियर के रूप में देनी पड़ती। इतना ही नहीं राज्य सरकार को इससे राज्य को 10,460 करोड़ रुपये की वार्षिक बचत भी हुई हुई। ये रकम वेतन में बढ़ोतरी के कारण हर साल शिक्षाओं को देनी पड़ती। राज्य में 4 लाख नियोजित शिक्षक हैं और एक लाख भर्ती और हो रही है जबकि सरकारी शिक्षकों की संख्या 60 हजार है। राज्य सरकार ने कोर्ट में बताया है कि इस कैडर को मुआवजा देकर हटाने की योजना भी है।
सुप्रीम ने सरकार की इस दलील को स्वीकार किया बिहार में अब स्कूल से बाहर रह गए बच्चों का फीसदी एक रह गया है, जो दस साल पहले 12 था। कोर्ट ने कहा कि डाइंग कैडर के साथ वेतन बराबरी की बात नहीं की जा सकती। जो कैडर समाप्त हो रहा है उसके वेतन को आधार नहीं बनाया जा सकता।
बिहार सरकार पर 20 हजार का जुर्माना
सुप्रीम कोर्ट ने अपील दायर करने में 728 दिनों की देरी करने पर बिहार सरकार पर 20 हजार रुपये का जुर्माना ठोका है। कोर्ट ने कहा जुर्माने की यह रकम संबंधित अधिकारी से वसूली जाए। कोर्ट ने यह भी कहा राज्य सरकार वसूली का प्रमाणपत्र कोर्ट में पेश करेगी। यह रकम सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस को जाएगी। कोर्ट ने कहा कि यह सरकारी बाबुओं की काहिली है और कुछ नहीं। कोर्ट ने सरकार का यह तर्क ठुकरा दिया कि देरी का कारण अपील पेश करने के लिए विभिन्न विभागों से ली गई अनुमति है।