अयोध्या विवाद में मध्यस्थता के मुद्दे पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई होगी. जिसमें तय होगा कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर क्या मध्यस्थता के जरिए समाधान किया जा सकता है? इससे पहले 26 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह अगली सुनवाई में यह फैसला करेंगे कि इस मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा जाए या नहीं. 6 मार्च को अगला आदेश देने की बात की गई थी.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुझाव दिया था कि दोनों पक्षकार बातचीत का रास्ता निकालने पर विचार करें. अगर बातचीत की थोड़ी बहुत गुंजाइश भी है, तो उसका प्रयास होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दोनों पक्ष इस मामले में कोर्ट को अपने मत से अवगत कराएं.
सरकार ने रिट पिटीशन दायर कर विवादित जमीन को छोड़कर बाकी जमीन यथास्थिति हटाने की मांग की है. उन्होंने इसे रामजन्म भूमि न्यास को लौटाने को कहा है. सरकार ने कोर्ट से कहा है कि विवाद सिर्फ 0.313 एकड़ जमीन पर ही है. बाकी जमीन पर कोई विवाद नहीं है, लिहाजा इस पर यथास्थिति बरकरार रखने की जरूरत नहीं है.
बता दें सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन सहित 67 एकड़ जमीन पर यथास्थिति बनाने को कहा था. लेकिन, केंद्र के इस स्टैंड के बाद अयोध्या में विवादित स्थल का मामला सिर्फ 0.313 एकड़ भूमि तक ही अटक कर रह गया है.
दरअसल, 1993 में केंद्र सरकार ने अयोध्या अधिग्रहण एक्ट के तहत विवादित स्थल समेत आस-पास की करीब 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था. सुप्रीम कोर्ट ने इसी पर यथास्थिति बनाए रखने की बात कही थी. इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट की नई बेंच मंगलवार को सुनवाई करने वाली थी, लेकिन जस्टिस एसए बोबडे के छुट्टी पर जाने के कारण सुनवाई टल गई थी.
सुप्रीम कोर्ट में अपील के बाद केंद्र ने कहा, ‘हम विवादित जमीनों को नहीं छू रहे हैं. बीजेपी ने हमेशा कहा है कि मंदिर राम जन्मभूमि पर ही बनाया जाए, जो भी कानूनी रास्ता उसके लिए अपनाना पड़ेगा, हम अपनाएंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘जनता राम मंदिर बनते देखना चाहती है, लेकिन यह मामला कानूनी दायरे में है और रास्ता भी उसी के लिहाज से निकाला जाएगा.’
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