आज के समय में किसी भी बात का महत्व विचार से ज्यादा बाजार से तय होता है। बाजार की दृष्टि से भारतीय भाषाओं का आकलन कभी किया ही नहीं गया। अभी हमारे देश का पूरा तंत्र अंग्रेजीमय है। शिक्षा, न्याय, स्वास्थ्य, शासन सब अंग्रेजी में। केवल अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा के होने से ही पाठ्यपुस्तकों का बाजार 2020 में 518 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा होने का अनुमान था। हमारी सभी प्रमुख भाषाएं जब अपने-अपने क्षेत्र में शिक्षा का माध्यम बनेंगी तो यह बाजार बहुत बड़ा हो जाएगा। अभी कंप्यूटर सारे काम अंग्रेजी माध्यम में ही करता है। इसके अठारह भारतीय भाषाओं में होने पर बाजार के विस्तार की संभावना भी चार गुना से अधिक तो होनी ही चाहिए। भाषागत आदर्शों को यथार्थवादी नजरिए से देख-परख कर, एक व्यावहारिक दृष्टि विकसित कर विचार और बाजार के बीच संतुलन स्थापित करना उतना भी मुश्किल काम नहीं।