मथुरा: देश में होली का त्योहार 18 मार्च का मनाया जाएगा। पूरे देशभर में होली का त्योहार रंग गुलाल से मनाया जाता है और एक दूसरे को होली की बधाई देकर मीठाई खिलाई जाती है। लेकिन कई ऐसे गांव है जहां होली मनाने को लेकर अलग ही परंपरा है। होली पर मजाक और मसखरी का अपना अलग मजा है। इसी लिए कहा जाता है बुरा न मानों होली है!
आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे है जहां चप्पल मार होली मनाई जाती है। यहां लठामार होली के नाम से प्रसिद्ध है। दरअसल, मथुरा के ब्रज में होली की एक अनोखी परंपरा है। यहां चप्पल मार होली मनाई जाती है।
मथुरा के सौंख क्षेत्र के बछगांव में कई दशक से इस परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है। परंपरा क्यों पड़ी, इसके पीछे ग्रामीणों के अपने-अपने तर्क हैं। धुलेंडी के दिन सुबह करीब 11 बजे ग्रामीण एक-दूसरे को गुलाल का टीका करते हैं। इसके बाद छोटे-बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं। फिर हमउम्र एक-दूसरे को चप्पल मारते हैं। खास बात ये है कि चप्पल मारने को लेकर अभी तक कोई विवाद नहीं हुआ है
करीब 20 हजार की आबादी वाले बछगांव में ये परंपरा कब से और क्यों पड़ी, इसके लिए अधिकांश बुजुर्गो का कहना है कि वह बचपन से धुलेंडी के दिन चप्पल मार होली देखते आ रहे हैं। कुछ ग्रामीणों के अलग-अलग तर्क हैं।
ग्रामीणों के अपने-अपने तर्क
गांव के बुजुर्ग लक्ष्मन बताते हैं कि हमारे बुजुर्ग बताते थे कि चप्पल मार होली की परंपरा बलदाऊ और कृष्ण की होली से पड़ी। होली पर कृष्ण को बलदाऊ ने प्यार में पहनी मार दी थी। इसी परंपरा को धुलेंडी के दिन बछगांव निभाता है। पहनी के बारे में दंडी स्वामी रामदेवानंद सरस्वती जी महाराज बताते हैं कि बलदाऊ और कृष्ण घास और पत्तों से बनी पहनी पैर में धारण करते थे। ग्रामीण योगेश का कहना है कि बुजुर्गों ने बताया था कि गांव के बाहर ब्रजदास महाराज का मंदिर है। पहले महाराज वहां रहते थे।
होली के दिन गांव के किरोड़ी और चिरंजी लाल वहां गए। महाराज की खड़ाऊ अपने सिर पर रख ली, उसके बाद उनकी तरक्की हुई। चप्पलमार होली की परंपरा यहीं से पड़ी। ग्राम प्रधान मंजू चौधरी के मुताबिक प्राचीन समय से चप्पलमार होली का आयोजन हो रहा है। इस होली में ग्रामीण प्रेमभाव से सहभागी होते हैं। इसकी परंपरा कहां से और कैसे शुरू हुई। इसकी सटीक जानकारी नहीं है।।
ब्रज में ये भी अनूठी परंपरा
लड्डू होली: बरसाना के लाड़ली जी मंदिर में लठामार होली से एक दिन पूर्व लड्डू होली होती है। इसमें लड्डुओं की बरसात होती है।
-लठामार होली: बरसाना में हुरियारिन हुरियारिनों पर लठ बरसाती हैं। जिसे हुरियारे अपनी ढाल पर रोकते हैं। इसके अलावा नंदगांव व रावल में भी लठामार होली होती है।
-छड़ीमार होली: इसका आयोजन गोकुल में होता है। गोकुल में कान्हा का बचपन बीता। मान्यता है कि होली पर शरारत करने पर गोपिकाएं बालक कान्हा को छड़ी से मारती हैं ताकि कान्हा को चोट न लग जाए।