Bastar Dussehra: जानें विश्वभर में क्याें प्रसिद्ध है बस्तर का दशहरा, 75 दिनों तक चलने वाला पर्व का इतिहास है 600 वर्ष पुराना

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Bastar Dussehra 2023: 75 दिनों तक चलने वाला विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा लोकोत्सव आस्था और सामाजिक समरसता का अनूठा उदाहरण है। इस दौरान 50 फीट उंची और कईं टन वजनी रथ की परिक्रमा के लिए सैकड़ों आदिवासी गांव-गांव से पहुंचते हैं। रथ परिक्रमा के दौरान रथ पर माईं दंतेश्वरी की डोली और छत्र आरूढ़ रहती है।

इस लोकोत्सव में रथ निर्माण हेतु लकड़ी लाने से लेकर उसे खींचने रस्सी बनाने समेत प्रत्येक विधान में बस्तर अंचल में रहने वाले विभिन्न जनजातीय समुदायों की भागीदारी तय होती है। इस प्रकार 600 सालों से बस्तर में रहने वाले प्रत्येक जाति के लोगों को पर्व में जिम्मेदारी देकर उनका सम्मान किया जाता है।
Bastar Dussehra 2023: जानकारो के अनुसार बस्तर दशहरा लोकोत्सव का शुभारंभ 1410 ईसवी में महाराजा पुरषोत्तम देव ने किया था। उस दौरान बस्तर के राजा पुरषोत्तम देव ने रथपति की उपाधि प्राप्त की थी। माना जाता है कि उसके बाद से अब तक यह
परम्परा चलती आ रही है। दशहरा के दौरान देश में बस्तर इकलौती ऐसी जगह है जहां इस तरह की परंपरा को देखने के लिए हर वर्ष अधिक से अधिक संख्या मे लोग पहुंचते हैं। बता दें कि इस साल दशहरे पर बड़ी संख्या में लोग अद्भुत रस्मों को देखने यहां पहुंचे है।

रथ परिक्रमा की परंपरा

Bastar Dussehra:  राजा पुरषोत्तम देव द्वारा शुरू किए गए इस रस्म को 800 सालों से लगातार निभाया जा रहा है। नवरात्रि के दूसरे दिन से सप्तमी तक मांई जी की सवारी को फूल रथ के नाम से भी जाना जाता है। वहीं इतिहासकार बताते है कि मां दंतेश्वरी के मंदिर से मां के छत्र और डोली को रथ तक लाया जाता है। इस दौरान बस्तर पुलिस के जवान बंदूक से सलामी देकर इस रथ की परिक्रमा की घोषणा करते है। रथ परिक्रमा का लुत्फ उठाने बस्तरवासियो के साथ-साथ देश के कोने-कोने से लोग बस्तर पंहुचे है।

आज मावली परघाव में उमड़ेगा जन सैलाब

Bastar Dussehra 2023: दशहरा की प्रमुख रस्मों में एक मावली परघाव पर आज मावली माता के स्वागत के लिए नगर में जन सैलाब उमड़ेगा। इस विधान के तहत दंतेवाड़ा शक्तिपीठ से मावली माता की डोली धूमधाम से यहां लाई जाती है। रात मे देवीजी की डोली को जिआ डेरा में रखा जाता है। पूजा-आराधना उपरांत सोमवार की देर शाम दंतेवाड़ा के प्रधान पुजारी समेत श्रद्धालु गाजे-बाजे के साथ माईजी की डोली लेकर दंतेश्वरी मंदिर पहुंचते हैं। बस्तर राजपरिवार समेत हजारों श्रद्धालु डोली की अगवानी करते हैं।

Bastar Dussehra 2023::  कल रथ चुराकर ले जाएंगे आदिवासी

मंगलवार को लोकोत्सव के तहत भीतर रैनी विधान पूरा किया जाएगा। रथ परिक्रमा के उपरांत देर रात आदिवासी परंपरानुसार रथ की चोरी कर यहां से दो किमी दूर कुमडाकोट में जाकर छिपा देंगे। इसके दूसरे दिन बाहर रैनी विधान के अंतर्गत बस्तर राजपरिवार के सदस्य कुमडाकोट पहुंचेगे। वे आदिवासियों को भेंट देंगे। उनके साथ नए फसल की खीर खाएंगे। इस नवाखानी के बाद रथ को वापस सिरासार चौक लाया जाएगा। इसके बाद कुटुंब जात्रा में सभी आमंत्रित देवी-देवताओं की विदाई होगी। पर्व के अंत में अंत में माई दंतेश्वरी की धूमधाम से विदाई होगी।

 

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