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Tuesday, May 30, 2023

Happy Mothers 2023 : ‘मदर्स डे’ पर पत्रकार श्यामबिहारी द्विवेदी द्वारा लिखी गई सुंदर कविता, जमकर हो रही वायरल, पढ़कर आप भी हो जाएंगे भाव विभोर

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Happy Mothers Day poem in hindi : भोपाल। जैसा की हम सब जानते है हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को ‘मदर्स डे’ (Happy Mothers Day) सेलिब्रेट किया जाता है। इस साल यह दिवस रविवार यानी 14 मई को मनाया गया है। कहते हैं कि दुनिया में सबसे खूबसूरत और प्यारा रिश्ता कोई होता है तो वह मां और बच्चे का रिश्ता होता है। मदर्स डे पर सोशल मीडिया पर कई वीडियो वायरल हुए है। कई लोगों ने अपनी मां के साथ तस्वीरें शेयर की है। मदर्स डे को हालांकि मैं नहीं मानता हूं क्योंकि मेरा हर एक दिन, एक एक सेकेण्ड मेरी मां के लिए समर्पित है। इस शुभ अवसर पर मुझे केवल एक श्लोक याद आता है जिसमें मां की ममता को समाहित किया गया है।

 

‘नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।’

अर्थात, माता के समान कोई छाया नहीं है, माता के समान कोई सहारा नहीं है। माता के समान कोई रक्षक नहीं है और माता के समान कोई प्रिय चीज नहीं है।

 

 

सभी पाठकों के लिए मेरा सादर नमस्कार….

मैं श्यामबिहारी द्विवेदी एक सामान्य ब्राह्मण परिवार से आता हूं। मुझे अपने स्कूल दिनों से ही लिखने और मंच पर बोलने का बड़ा शौक था। इस समय मैं भोपाल में पत्रकार हूं और बुंदेलखंड जिला दमोह हिण्डोरिया का निवासी हूं। मैं आज अपने सभी पाठकों को अपनी कविता के माध्यम से मां की ममता से रूबरू करा रहा हूं…..जब कोई पाठक इस कविता की गइराई को समझेगा तो मेरा मानना है कि वह अपने बचपन में चला जाएगा और हर एक क्षण को याद करेगा।

 

मां की ममता…

चारों ओर मदर्स डे पर बधाईंया छाईं थी
फिर वृद्धा आश्रम पर ये किसकी मां आई थी।
फोटो खींच सभी ने मोबाइल में लगा ली मां की डीपी
जब छोड़ा तुमने उसको, पता है उस पर क्या बीती।।

सारी जिंदगी पाला, तुमने पल में पराया किया है
कहती मेरा लाल चांद है, फिर ग्रहण क्यों लगाया है।
कैसे बदल जाती है ये जिंदगी
स्कूल का हिसाब तुमने वृद्धाश्रम दाखिले से चुकाया है।।

खाने का निवाला ममता की छांव से भरी थी
स्कूल से आता लौटकर गेट पर खाने की थाली लिए खड़ी थी।
बुखार आने पर सारी रात आंख खोलकर बीताती थी
बुढ़ापे में मेरा लाल बनेगा लाठी, पड़ोस में सब को बताती थी।।

गर्मी में बिजली नहीं आंचल लहराकर हमको सुलाती
हालात बुरे थे फिर भी राजा बेटा कहकर बुलाती
घर की चार दीवारों के बीच बिता दी उमर सारी
बेटे की मुस्कान पर ही सारा जहां घूम आती।।

मां की ममता का मोल चुकाना मुश्किल है
वृद्धाश्रम तो दूर आंखों से ओझल कर पाना मुश्किल है।
कितने भी कमा लूं पैसे
मां के बिना रहना मुश्किल है।।

इधर आ नहीं मारूंगी, फिर भी कुटाई लगाती थी
आंखों से गिरे बेटे के आंसू देख, तुरंत गले से लगाती थी।
जेब खाली तो लक्ष्मी, पापा की डांट पर दुर्गा, कहानियों पर सरस्वती
याद आते हैं वो पल, जब क्षण-क्षण पर रूप दिखाती थी।।

चूल्हे पर रोटी बनाती मां, हाथों के निशान छुपाती हो
नहीं हो रहा दर्द कितने बहाने बनाती हो।।
त्याग, बलिदार, तपस्या से भरी जिंदगी तेरी
अपने सपनों पर हल चलाकर माँ तुम, हर सबेरे करुणा की ज्योत जलाती हो।।

मां…

महाशय कवि
पंडित श्यामबिहारी द्विवेदी

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