IAS officer arrested भ्रष्टाचार मामले में एसआईटी और फरीदाबाद पुलिस की संयुक्त टीम ने आईएएस अधिकारी धर्मेंद्र सिंह को गुरुग्राम से गिरफ्तार किया है। वह हरियाणा भवन में रेजिडेंट्स कमिश्नर के पद पर तैनात थे। अभी सोनीपत में उनकी पोस्टिंग है।
IAS officer arrested बताया जा रहा है कि आरोपी ने एक 55 करोड़ रुपये के टेंडर को 87 करोड़ रुपये का बनाकर मंजूरी के लिए आगे भेजा था। इसके अलावा आरोपी ने एक अन्य ठेकेदार से इसके एवज में एक करोड़ 11 लाख रुपये की रिश्वत ली थी। जानकारी के अनुसार आरोपी के खिलाफ साल 2022 में नई दिल्ली के रणजीत नगर के निवासी ललित मित्तल की शिकायत पर कोतवाली थाने में मुकदमा दर्ज किया गया था।
रिश्वत की रकम उच्च अधिकारियों को बांटी : ललित ने शिकायत में बताया था कि पंकज गर्ग,आरबी शर्मा, जेके भाटिया नाम के लोगों ने मिलकर उन्हें नगर निगम में सरकारी टेंडर दिलाने का झांसा देकर 1.11 करोड़ रुपये रिश्वत ली थी। इन लोगों ने ललित मित्तल को बताया था कि रिश्वत की रकम उच्च अधिकारियों को बांटी गई है। बाद में ललित मित्तल को कोई सरकारी ठेका भी नहीं मिला तो उन्होंने मुकदमा दर्ज कराया। पुलिस को सोनीपत में नगर निगम आयुक्त रहते हुए एक इमारत के निर्माण में भी गड़बड़झाला करने की जानकारी भी मिली। उन्होंने 52 करोड़ रुपये के टेंडर की राशि को बढ़ाकर 87 करोड़ रुपये कर दिया था। एसआइटी ने इसकी जांच तकनीकी टीम से कराई थी। सोमवार को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
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कोरोना काल में फरीदाबाद में तैनात था आरोपी : सूत्रों की माने तो भ्रष्टाचार मामले में गिरफ्तार आरोपी आईएएस अधिकारी धर्मेंद्र सिंह नगर निगम फरीदाबाद में तैनात रह चुके हैं। आरोपी नगर मुख्यालय में संयुक्त आयुक्त के पद पर साल 2020 में रह चुके हैं।
नगर निगम के सूत्रों के मुताबिक, नगर निगम के अधिकारी विकास कार्य के लिए पहले टेंडर लगाते देते हैं । उसके बाद फिर निर्माण कार्य के दौरान निर्माण कार्य की लागत की समीक्षा करते हैं और चालू काम के लिए कुछ अन्य कार्य की जरूरत बताते हुए अन्य कार्य के लिए अतिरिक्त लागत का बजट बनाया जाता है। विकास कार्य की लागत ज्यादा कर दी जाती है।इसके चलते काम पूरा होने तक विकास कार्य की लागत शुरुआत की लागत के मुकाबले काफी ज्यादा हो जाती है। खास बात यह है कि टेंडर के रूप में शुरुआत में जिस ठेकेदार को काम दिया जाता है, बाकी कार्य भी उसी ठेकेदार से काम करवाया जाता है। ठेकेदार की मिलीभगत भी होती है।
विकास कार्य की लागत बढ़ाने का पुराना खेल
नगर निगम के विकास कार्य की लागत को बढाने का खेल लंबे समय से खेला जा रहा है। 200 करोड़ रुपये के घोटाले में भी ऐसे मामले सामने आए थे। इसके बावजूद नगर निगम के अधिकारी घोटाले करने से बाज नही आ रहे हैं। नगर निगम के अधिकारियों का यह हाल तो तब है जब मुख्यमंत्री मनोहर लाल भी विकास कार्य की लागत में ज्यादा बढ़ोतरी करने पर रोक लगाने के आदेश दे चुके हैं। मुख्यमंत्री के आदेशानुसार संबंधित विकास कार्य की लागत बढ़ाने से पहले एक प्रोसेस को पूरा करना जरूरी होगा। इसके लिए अलग-अलग स्तर पर अधिकारियों को लागत बढ़ाने की अलग-अलग पावर दी हुई हैं।
ऐसे करते हैं अधिकारी खेल
नगर निगम के सूत्रों के मुताबिक नगर निगम के अधिकारी विकास कार्य के लिए पहले टेंडर लगाते देते हैं । उसके बाद फिर निर्माण कार्य के दौरान निर्माण कार्य की लागत की समीक्षा करते हैं और चालू काम के लिए कुछ अन्य कार्य की जरूरत बताते हुए अन्य कार्य के लिए अतिरिक्त लागत का बजट बनाया जाता है। विकास कार्य की लागत ज्यादा कर दी जाती है।इसके चलते काम पूरा होने तक विकास कार्य की लागत शुरुआत की लागत के मुकाबले काफी ज्यादा हो जाती है। खास बात यह है कि टेंडर के रूप में शुरुआत में जिस ठेकेदार को काम दिया जाता है, बाकी कार्य भी उसी ठेकेदार से काम करवाया जाता है। ठेकेदार की मिलीभगत भी होती है।