तेलंगाना के रहने वाले कर्नल संतोष बाबू 16 बिहार रेजिमेंट के कमांडिंग अफसर थे। कर्नल संतोष 18 महीने से लद्दाख में भारतीय सीमा की सुरक्षा में तैनात थे। बताया जा रहा है कि जब 6 जून की मीटिंग के बाद से कर्नल गलवान घाटी पर डटे थे। चीनी सेना के क्षेत्र से हटने तक उन्हें वहीं रहना तैनात रहना था। वह इलाके में गश्ती दल का नेतृत्व कर रहे थे। इसी दौरान उनपर घात लगाकर हमला कर दिया गया था और कर्नल संतोष बाबू शहादत को प्राप्त हुए।
कर्नल संतोष ने आंध्र प्रदेश के कोरुकोंडा में सैनिक स्कूल जॉइन किया था और उसके बाद सेना के नाम अपना जीवन कर दिया था। उन्होंने 14 जून को अपने घर पर बात की थी और जब पिता ने उनसे सीमा पर तनाव के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘आपको मुझसे यह नहीं पूछना चाहिए। मैं आपको कुछ नहीं बता सकता हूं। हम तब बात करेंगे जब मैं वापस आ जाऊंगा।’
अगली रात को ही कर्नल संतोष गलवान घाटी में शहीद हो गए। कर्नल ने अपने घर पर बताया था कि जो टीवी न्यूज चैनल पर दिखाया जा रहा है, जमीन पर सच्चाई उससे काफी अलग है। कर्नल संतोष का हैदराबाद ट्रांसफर होना था लेकिन कोरोना वायरस लॉकडाउन की वजह से इसमें देरी हो रही थी।
कर्नल संतोष के पिता ने बताया, ‘मैं सेना जॉइन करना चाहता था लेकिन कर नहीं सका। जब मेरा बेटा 10 साल का था तब मैंने उसमें यूनिफॉर्म पहनकर देश की सेवा करने का सपना जगाया।’ सैनिक स्कूल में पढ़ने के बाद कर्नल संतोष NDA चले गए और फिर IMA। कर्नल के पिता और मां मंजुला तेलंगाना के सूर्यपेट में रहते हैं।
कर्नल की पत्नी संतोषी 8 साल की बेटी और 3 साल के बेटे के साथ दिल्ली में रहती हैं। कर्नल के पिता कहते हैं, ’15 साल में मेरे बेटे को चार प्रमोशन मिले। पिता के तौर पर मैं चाहता था कि वह खूब ऊंचाइयां चूमे। मैं जानता था कि सेना के जीवन में अनिश्चितता होती है, इसलिए हमें संतोष है कि उसने देश के लिए सबसे बड़ा बलिदान दे दिया।’