कोलंबो : sex work for fear of losing their jobभारत का पड़ोसी देश श्रीलंका कभी अपनी खूबसूरती और मनोरम दृश्यों के लिए दुनियाभर में विख्यात था। ज्यादातर एशियाई पर्यटक छुट्टी मनाने के लिए श्रीलंका जाना पसंद करते थे। लेकिन अब यह देश अपने सबसे बुरे वक्त से जूझ रहा है। आर्थिक मुश्किलों ने लोगों की कमर तोड़ दी है और गरीबी अब मजबूरी बनती जा रही है। श्रीलंकाई अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक कपड़ा उद्योग में काम करने वाली महिलाओं में आर्थिक संकट के चलते नौकरी से निकाले जाने के डर के बीच ‘सेक्स वर्क’ का सहारा लेने का ट्रेंड बढ़ रहा है।
sex work for fear of losing their jobअनुसार मौजूदा आर्थिक संकट के चलते कपड़ा उद्योग में काम करने वाली कई महिला कर्मचारिओं को नौकरी गंवाने का डर सता रहा है। ये महिलाएं आय सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक रोजगार की तलाश कर रही हैं। एक महिला कर्मचारी ने अखबार को बताया, ‘हमने सुना है कि देश में आर्थिक संकट के चलते हम अपनी नौकरियां खो सकते हैं और इस समय हमें इसका सबसे अच्छा समाधान सेक्स वर्क दिख रहा है।’
‘नौकरी के बिना जिंदा नहीं रह सकती’
महिला ने कहा, ‘हमारा मासिक वेतन करीब 28,000 रुपए है और ओवर टाइम करके हम ज्यादा से ज्यादा 35,000 रुपए कमा सकते हैं। लेकिन सेक्स वर्क से हम हर रोज 15,000 रुपए से अधिक कमा सकते हैं। सब लोग मुझसे सहमत नहीं होंगे लेकिन यह सच है।’ दूसरी महिला ने कहा, ‘मैं एक ग्रामीण इलाके से आती हूं और अपने परिवार में अकेली कमाने वाली हूं। मैं घर वापस नहीं जा सकती और बिना नौकरी के मैं जिंदा नहीं रह सकती।’
‘दूसरा कोई रास्ता नहीं’
उन्होंने कहा, ‘मुझे पता है कुछ लोग सेक्स वर्क से ढेर सारा पैसा कमाते हैं। वे हमारे पड़ोस में रहते हैं। पहले तो मुझे यह पसंद नहीं था लेकिन अब मुझे कोई दूसरा विकल्प नहीं दिखता है।’ सेक्स वर्कर्स की वकालत करने वाला देश का सबसे बड़ा ग्रुप स्टैंड अप मूवमेंट लंका (एसयूएमएल) की कार्यकारी निदेशक आशिला डांडेनिया ने कहा कि उन्हें कपड़ा उद्योग की महिला कर्मचारियों के बीच असुरक्षित गर्भधारण और वेश्यावृत्ति में बढ़ोत्तरी का अनुभव हो रहा है।
कृषि का विकल्प पहले से बंद
कृषि के क्षेत्र में महिलाओं के लिए फिलहाल अवसर उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि पिछले साल पैदावार में 50 फीसदी तक की गिरावट आई थी। तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की ओर से मई 2021 में रासायनिक उर्वरकों के आयात पर बैन लगाने के बाद देश की कृषि भूमि का एक बड़ा हिस्सा बेकार पड़ा है।